पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कश्मीर पर अपने मुल्क और कूटनीति की नाकामयाबी को कबूल किया है। वॉइस ऑफ कराची के चेयरमैन नदीम नुसरत ने सोमवार को कहा कि इमरान खान पाकिस्तान की सेना के हाथों की कठपुतली से ज्यादा कुछ नही है जो अपने आका के हुक्म पर बात करते हैं।
उन्होंने कहा कि “पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कबूल किया कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला हो गया है। उन्होंने कहा कि आज कोई भी मुस्लिम देश आर्थिक या अन्य कारणों से पाकिस्तान के साथ नही है, वे भविष्य में हमारे साथ होंगे।”
उन्होंने कहा कि “पाकिस्तान की विदेश नीति में कश्मीर का मुद्दा फॉरफ्रंट पर है। पाकिस्तान की सैन्य स्थापना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई अरबो रुपये चरमपंथी संगठनो, कश्मीरी समितियों और अपने दूतावासों में कश्मीरी डेस्को का निर्माण करने में बर्बाद करती है। पाकिस्तान की असफल घरेलू और विदेश नीतियो का नेतृत्व सेना करती है और देश के माहौल को सेना ने अराजकता में परिवर्तित कर दिया है।”
नुसरत ने इमरान खान के दावों को सिरे से खारिज किया है कि सरकार की नीति अन्य राष्ट्रों के साथ शांतिपूर्ण संबंधों का निर्माण करना है, इसमे भारत और अफगानिस्तान भी शामिल है। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि आतंकी संगठन अफगानिस्तान और भारत मे घातक हमलों में शामिल है और इमरान खान सरकार में संरक्षण का लुत्फ उठा रहे हैं।
वीओके के अध्यक्ष ने कहा कि इस्लामाबाद धार्मिक अल्पसंख्यकों आउट संजातीय समूहों के मूलभूत अधिकारों का हनन कर रहा है। यहाँ लाखो मोहजिर्स, बलोच, पश्तून और संजातीय समूह है जो पाकिस्तानी सुरक्षा सेना के हाथों नरसंहार का सामना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जो इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ खड़ा होता है, वह गिरक़ानूनी गिरफ्तारी, बर्बर अत्याचार, अपहरण का पीड़ित बन जाता है। पाकिस्तान की पंजाबी सुरक्षा सेना ने साल 1992 से कराची में 25000 मोहजर्स को मौत के घाट उतारा है।
मोहजिर्स नेता ने कहा कि राज्य की सरकार अमेरिका द्वारा दिए गए एफ 16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल बर्बर सैन्य अभियानों के लिए करता है। पाकिस्तानी सेना ने बीते कुछ वर्षों में हज़ारों बलोच नागरिको की हत्या की है और कई जबरन अपहरण का भी शिकार हुए हैं।
विश्व को पूछना चाहिए कि पाक कश्मीर मामले को उठा रहा है क्या वह अपने देश मे गैर पंजाबियों के खिलाफ आतंकवाद को रोकने के लिए भी इच्छुक हैं। पाकिस्तानी नागरिक और सैन्य सरकार की तरफ से लगातार आ रही परमाणु धमकियों को भी विश्व को गंभीरता से लेना चाहिए।