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    दिसंबर महीने की एमपीसी बैठक में आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने वैश्विक मार्केट में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों तथा रोजकोषीय और बाहरी मोर्चों पर अनिश्चितताओं को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी। यह दूसरा मौका है जब कि रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने एमपीसी बैठक में अपनी ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा। आपको बतादें कि अपनी पिछली बैठक में भी आरबीआई ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था।

    आरबीआई की ओर से 5 और 6 दिसंबर को हुई एमपीसी बैठक के मिनट्स के अनुसार, पैनल के दो अन्य सदस्यों डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य और कार्यकारी निदेशक माइकल देवव्रत पात्रा ने पेट्रोलियम उत्पादों में मुद्रास्फीति का मुद्दा उठाया था।  दिसंबर महीने की द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई ने संभावित रेपो रेट को 6 फीसदी पर बरकरार रखा था, हांलाकि आरबीआई ने आगामी महीनों में ब्याज दरों की कटौती की संभावना को बरकरार रखा।

    आरबीआई की एमपीसी बैठक

    एमपीसी प्रमुख ऋण दर या रेपो दर पर फैसला करता है। एमपीसी बैठक के दौरान आरबीआई गवर्नर पटेल ने नीतिगत दरों के यथावत रहने के प्रश्न पर कहा कि अक्टूबर 2017 में हुई पिछली एमपीसी मीटिंग के बाद से आर्थिक स्थिति में कोई व्यापक बदलाव देखने को नहीं मिला है। क्रूड आॅयल की बढ़ती कीमतों के चलते वित्तीय तथा बाहरी मोर्चों पर कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।

    आचार्य ने नीतिगत दरों में यथास्थिति की वकालत करते हुए कहा कि, वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते अर्थव्यवस्था में दबाव पैदा हुआ है। पात्रा ने कहा कि देश में बढ़ती महंगाई के लिए केवल सब्जियां की जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि पेट्रोलियम उत्पाद भी मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी कर रहे हैं।

    उन्होंने कहा कि सामान्यीकृत मुद्रास्फीति का जोखिम काफी हद बढ़ गया है। उम्मीद है कि सर्दियों के मौसम में सब्जियों और फलों की कीमतों में कुछ नमी आ सकती है। हांलाकि मुद्रास्फीति में इजाफा होने की संभावना बनी हुई है। छह सदस्यीय समिति में से सिर्फ रविंद्र एच ढोलकिया ने नीतिगत दरों में मात्र 0.25 फीसदी कटौती के पक्ष में संस्तुति की थी, जब कि एमपीसी के दूसरे दो सदस्यों में चेतन घाटे और प्यूमी दुआ का नाम शामिल है।