मुंबई, 9 जुलाई (आईएएनएस)| बॉम्बे उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से कहा कि उनका काम फिल्मों को प्रमाणित करना है, सेंसर करना नहीं। इसके बाद निर्देशक मनोज तिवारी जिनकी फिल्म ‘चिड़ियाखाना’ अभी विवादों में घिरी है, का कहना है कि उन्होंने पूरी फिल्म की शूटिंग बच्चों की बात को ध्यान में रखकर की।
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने हाल ही में बच्चों की इस फिल्म को इस आधार पर ‘यू/ए’ प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया कि इसमें हिंसा और भेदभाव है जिससे बच्चे परेशान हो सकते हैं।
इस मामले पर बात करते हुए तिवारी ने मंगलवार को कहा, “फिल्म ‘चिड़ियाखाना’ को भारत के बाल चित्र समिति के एक पैनल द्वारा मान्यता दी गई थी। वे पेशेवर हैं जो फिल्म की थीम को समझते हैं — यह एक शहर में हरित क्षेत्रों की महत्ता को दिखा रहा है जो तमाम सुविधाओं वंचित बच्चों को खेल के लिए प्रोत्साहित करती है और यह राष्ट्रीय एकीकरण के विषय को भी स्पर्श करती है। मैंने दिमाग में बच्चों का ख्याल रख फिल्म की शूटिंग की।”
उन्होंने यह भी कहा कि साधारण कहानियों से परे बच्चों को इस तरह की कहानियां भी समझनी चाहिए।
फिल्म की कहानी बिहार के एक बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है जिसे फुटबॉल खेलना पसंद है और फुटबॉलर बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए वह मुंबई पहुंचता है।
फिल्म में गोविंद नामदेव, रवि किशन और प्रशांत नारायण सहित कई अन्य कलाकार हैं।
तिवारी ने यह भी कहा कि हल्की-फुल्की हिंसा, खेल के दौरान आपसी प्रतिस्पर्धा और जानवरों के काल्पनिक सिर का उपयोग कर फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य हैं जिससे सीबीएफसी को ऐसा लगता है कि फिल्म को यू प्रमाणपत्र नहीं दिया जाना चाहिए। इस तरह के दृश्यों को फिल्म की कहानी, विषय और पूरी फिल्म के परिप्रेक्ष्य में दिखाया गया है।
न्यायमूर्ति एस.सी. धर्माधिकारी और जी.एस. पटेल की खंडपीठ ने फिल्म निर्माता की अपील का समर्थन करते हुए कहा, “किसी ने सीबीएफसी को यह बौद्धिक नैतिकता और अधिकार नहीं दिया है कि वह यह निर्णय ले सके कि कौन क्या देखना चाहता।”
अदालत का शुक्रिया अदा करते हुए फिल्म निर्माता ने कहा, “सबसे पहले मेरी फिल्म को लेकर बात करने के लिए मैं जस्टिस एस.सी. धर्माधिकारी और जी.एस. पटेल का बहुत आभारी हूं।”
इस मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी।