अफगानिस्तान के सभी शिखर सम्मेलन देश को शान्ति की तरफ ले जायेंगे। इससे 18 वर्षों से जंग के संघर्ष से जूझ रहे देश के भविष्य के लिए एक नींव रखी जाएगी। वांशिगटन को उम्मीद है कि “शान्ति के लिए रोडमैप 1 सितम्बर को तय किया जायेगा।”
इसमें अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो सैनिको की वापसी भी शामिल है। क़तर में दो दिवसीय मुलाकात का आयोजन हो चुका है। दोहा में आयोजित इस बैठक में तालिबान के प्रतिनिधि, अफगानिस्तान की सरकार, महिलायें और देश के नागरिक समाज के सदस्य भी थे।
जंग के बाद अफगानिस्तान में इस्लामिक कानूनी प्रणाली होगी। जिसमे इस्लामिक मूल्यों के तहत महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण किया जायेगा और सभी संजातीय समूहों की समानता को सुनिश्चित किया जायेगा। तालिबान ने हाल ही में अफगानिस्तान सरकार के साथ बातचीत के लिए हामी भरी थी।
तालिबान ने बैठक में महिलाओं की भूमिका, आर्थिक विकास और अल्पसंख्यकों की भूमिका के बाबत बातचीत की थी। दो दिवसीय अफगानी सम्मेलन में अमेरिका ने प्रत्यक्ष तौर पर शिरकत नहीं की थी। राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रशासन को तालिबान अमेरिकी सरकार के हाथो की कठपुतली कहता है और बातचीत से इनकार करता है।
तालिबान का अलकायदा के साथ सम्बन्ध के कारण ही 18 वर्ष पूर्व अमेरिका ने अफगानिस्तान में दखलंदाज़ी की थी। अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के मुताबिक, वांशिगटन अफगानी सरजमीं से सभी विदेशी सैनिको को वापस बुलाएगा और तालिबान आतंकी समूहों को देश में सुरक्षित पनाह नहीं देगा।
इस समारोह को दोनों पक्षों के बीच जमी बर्फ पिघालने वाले के तौर पर देखा जा रहा है जो देश में शान्ति वार्ता का नेतृत्व कर सकता है।
माइक पोम्पिओ ने ट्वीटर पर लिखा कि “शान्ति के लिए आंतरिक अफगान वार्ता का आयोजन लम्बे अंतराल के बाद दोहा में हो रहा है। उच्च सरकार, नागरिक समाज, महिलाओं और तालिबानी प्रतिनिधियों को एक टेबल पर एकजुट होकर देखना अद्भुत है।”