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    मौसम विभाग

    कोलकाता, 2 जुलाई (आईएएनएस)| देशभर में जल संकट को देखते हुए पश्चिम बंगाल खुशकिस्मत है कि यहां पर्याप्त बारिश हो रही है लेकिन राज्य सरकार को जल संरक्षण के कार्य जारी रखने चाहिए और ज्यादा पानी लेने वाली फसलें बोने से बचना चाहिए।

    एक विशेषज्ञ ने यह सलाह दी है। पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन कल्याण रुद्र ने आईएएनएस से कहा, “देशभर में चल रहे जल संकट के बीच मुझे लगता है कि बारिश के मामले में पश्चिम बंगाल खुशकिस्मत है। यह खरीफ की खेती का मौसम है, अगर मानसून देरी से होता है तो किसान भूजल पर ही ज्यादा निर्भर होते हैं।”

    उन्होंने कहा कि डीवीसी, कांगशबती, मसंजोर बांध जैसे जलाशयों में पानी सबसे निचले स्तर पर है और फसलों की सिंचाई में इनका उपयोग नहीं किया जा सकता। भूजल के संसाधन सीमित हैं और इनका अधिक उपयोग करने का मतलब है पानी की कमी।

    राज्य के जल संसाधनों पर व्यापक शोध कर चुके रुद्र ने कहा कि राज्य में जल संसाधनों का सर्वाधिक उपयोग कृषि से जुड़ी गतिविधियों में होता है, जो बंगाल में लगभग 75-80 प्रतिशत है।

    आमतौर पर दिसंबर में बोई जाने वाली और अप्रैल में काटी जाने वाली धान की सूखी किस्म भूजल पर निर्भर है, क्योंकि इस दौरान बहुत कम बारिश होती है।

    उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हमें ऐसी फसलें नहीं बोनी चाहिए जिनमें ज्यादा पानी की जरूरत होती है और उनकी अपेक्षा गेहूं, दालें आदि बोनी चाहिए। शायद लोगों को अपनी खाने की आदतें बदलनी पड़ें क्योंकि प्रकृति अब इस विलासिता की अनुमति नहीं देगी।”

    उन्होंने कहा कि भूजल के बिना काम नहीं चल सकता लेकिन इसका उपयोग उस सीमा के भीतर प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए जितने की भरपाई अगले मानसून तक हो सके।

    कोलकाता में तेजी से कम हो रहे जल-स्तर पर उन्होंने कहा, “खुशकिस्मती से पानी के मामले में कोलकाता को रियायत मिली हुई क्योंकि हमारे पास हुगली नदी है। ज्वारीय नदी होने के कारण यह सूखी नहीं है।”

    उन्होंने कहा, “लेकिन लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैले 45 लाख की आबादी वाले 300 साल पुराने शहर में मैदान के अतिरिक्त हरियाली की कमी है, जिससे वर्षाजल को भूमि में रिसने से नहीं बचाया जा सकता।”

    उन्होंने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि भूजल स्तर नीचे चला गया है और सिर्फ उत्तरी 24 परगना और नादिया जैसे इससे सटे क्षेत्रों से ही इसकी फिर से भरपाई हो रही है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। अगर हम बिल्कुल अभी भी खुद को रोकते हैं, तो भी इसकी भरपाई में बहुत समय लगेगा।”

    रुद्र ने राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की।

    उन्होंने कहा, “पश्चिम बंगाल की परियोजना ‘जोल धोरो, जोल भोरो एक बहुत अच्छी परियोजना है और मेरे दिल के करीब है। यह परियोजना सभी गांवों में शुरू की जानी चाहिए।”

    उन्होंने कहा कि कोलकाता में 4,000 तालाब हैं, जिन्हें संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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