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    भोपाल, 12 जून (आईएएनएस)| सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की, दल कोई भी हो, सभी युवाओं और बेरोजगारी के मुद्दों पर छाती ठोककर खुद को एक-दूसरे से बड़ा हमदर्द बताते नहीं अघाते हैं, मगर यह आश्चर्यजनक है कि चिकित्सा शिक्षा महाविद्यालयों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नीट) के तहत होने वाली काउंसिलिंग (neet counselling) में ही भारत सरकार ने बीते साल (2018-19) 15.50 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा लिए हैं। यह खुलासा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी से हुआ है।

    देश के चिकित्सा शिक्षा महाविद्यालयों में पाठ्यक्रम (एमबीबीएस, बीडीएस आदि) में दाखिले के लिए नीट परीक्षा आयोजित की जाती है। लिखित परीक्षा में निर्धारित परसेंटाइल (अंक प्रतिशत) पाने के बाद ही विद्यार्थियों को काउंसिलिंग में हिस्सा लेने की पात्रता मिलती है। मेडिकल काउंसिलिंग कमेटी ने वर्ष 2018-19 से काउंसिलिंग पंजीयन शुल्क की शुरुआत की। इससे पहले विद्यार्थियों से काउंसिलिंग शुल्क लेने का प्रावधान नहीं था।

    मध्य प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय से काउंसिलिंग में भाग लेने वाले विद्यार्थियों से पंजीयन शुल्क के तौर पर वसूली गई राशि और खर्च का ब्योरा मांगा। इस पर उन्हें जवाब दिया गया कि वर्ष 2015, 2016 और 2017 में हुई काउंसिलिंग में विद्यार्थियों से कोई पंजीयन शुल्क नहीं लिया गया, मगर वर्ष 2018-19 की काउंसिलिंग में शामिल हुए विद्यार्थियों से पंजीयन शुल्क लिया गया।

    गौड़ को दिए गए जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि वर्ष 2018-19 में कुल 114,198 विद्यार्थियों ने कांउसिंलिंग के लिए पंजीयन कराया, जिनसे पंजीयन शुल्क के तौर पर 18,32,87,500 (18 करोड़ 32 लाख 87 हजार 500) रुपये की राशि वसूली गई। इसमें से काउंसिलिंग प्रक्रिया पर कुल 2,76,78,614 रुपये खर्च हुए। इसमें 15,56,08,886 (15 करोड़ 56 लाख 08 हजार 886) रुपये की राशि शेष बची है, और इसे भारत सरकार के खाते में जमा कराया जाएगा।

    गौड़ ने स्वास्थ्य मंत्रालय से जानना चाहा था कि प्रति छात्र 1,000 रुपये पंजीयन शुल्क किसके सुझाव पर लिया गया, जिसके जवाब में कहा गया है कि पंजीयन शुल्क के निर्धारण का फैसला स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से परामर्श के बाद चिकित्सा परामर्श समिति (एमसीसी) ने लिया था। काउंसिलिंग में खर्च हुई राशि के बाद जो राशि बची, उसे एमसीसी ने भारत सरकार के खाते में जमा करने का निर्णय लिया है। उसके बाद राशि व्यय करने का निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया जाएगा।

    सामाजिक कार्यकर्ता गौड़ का मानना है कि काउंसिलिंग के लिए पंजीयन शुल्क केंद्र सरकार को खत्म करना चाहिए, और यदि शुल्क खत्म नहीं किया जाता है तो आगामी वर्षो में यह शुल्क न लेकर वर्ष 2018-19 में पंजीयन शुल्क से हुए मुनाफे की राशि से काउंसिलिंग प्रक्रिया संपादित की जानी चाहिए।

    गौरतलब है कि केंद्र सरकार को बीते वर्ष काउंसिलिंग पंजीयन शुल्क से जितनी राशि प्राप्त हुई है, उससे कम से कम पांच सालों तक की काउंसिलिंग प्रक्रिया संपादित की जा सकती है। वहीं बैंक में धनराशि जमा रहने से मिलने वाला ब्याज उससे अतिरिक्त होगा।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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