भोपाल, 7 जून (आईएएनएस)| लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस संगठन में बदलाव की चर्चा जारों पर है। पार्टी में चिंतन-मंथन, बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। शनिवार को पार्टी की कोर कमेटी की बैठक होने से पहले ही संभावित अध्यक्ष को लेकर तकरार तेज हो गई है।
वर्तमान में राज्य इकाई के अध्यक्ष कमलनाथ हैं और मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास है। अब पार्टी में नया अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है। कमलनाथ इन दिनों दिल्ली प्रवास पर हैं और उनके इस प्रवास को लोकसभा चुनाव के नतीजों और नए प्रदेश अध्यक्ष की संभावनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है।
अध्यक्ष पद के दावेदारों में जो नाम सामने आ रहे हैं, उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव, राज्य सरकार के मंत्री बाला बच्चन, जीतू पटवारी शामिल हैं।
राज्य सरकार के मंत्री प्रद्युम्न सिंह और इमरती देवी नए अध्यक्ष के तौर पर सिंधिया को पार्टी की कमान सौंपे जाने की मांग कर चुके हैं।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय िंसंह के भाई और विधायक लक्ष्मण सिंह ने सिंधिया को पार्टी की कमान न दिए जाने की बात कही है। उनका मानना है कि सिंधिया के पास समय की कमी है, क्योंकि वह उत्तर प्रदेश में पार्टी का काम देख रहे हैं। इसलिए उन्हें यह जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए।
एक तरफ जहां सिंधिया का दबे स्वर में विरोध हो रहा है, वहीं पार्टी के भीतर से आदिवासी को संगठन की कमान सौंपे जाने की आवाज जोर पकड़ रही है। राज्य सरकार के मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने खुले तौर पर मंत्री बाला बच्चन को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की पैरवी की है। उनका कहना है, “राज्य में 22 प्रतिशत आबादी जनजातीय वर्ग से है। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनाने में इस वर्ग का योगदान है। बाला बच्चन सक्षम और अनुभवी नेता हैं, इसलिए उन्हें यह जिम्मेदार सौंपी जानी चाहिए।”
कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है। राज्य की 29 सीटों में से सिर्फ एक सीट ही कांग्रेस जीत सकी है। चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही नए अध्यक्ष की चर्चा है।
राज्य के वरिष्ठ नेताओं की कोर कमेटी की शनिवार को भोपाल में बैठक होने वाली है। इस बैठक में मुख्यमंत्री कमलनाथ के अलावा प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हिस्सा लेंगे। बैठक में नए अध्यक्ष, लोकसभा चुनाव में हार के कारणों सहित अन्य मसलों पर चर्चा संभावित है।
हालांकि कांग्रेस के लिए नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन आसान नहीं है, क्योंकि राज्य में गुटबाजी चरम पर है, भले ही वह दिखाई न दे। इन स्थितियों में एक सर्वमान्य अध्यक्ष आसानी से चुना जा सकेगा, इसमें संदेह है। कमलनाथ जब अध्यक्ष चुने गए थे, तब पार्टी में विरोध इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि हर नेता उनसे उपकृत था। साथ ही कमलनाथ समन्वय के मास्टर हैं। अब कमलनाथ जैसा दूसरा नेता पार्टी के पास फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।
कांग्रेस आगामी दिनों में होने वाले नगर निकाय और पंचायत चुनाव के मद्देनजर संगठन को मजबूत करना चाहती है, लिहाजा पार्टी को ऐसे अध्यक्ष की तलाश है, जो पार्टी के नेताओं में समन्वय बना सके और जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत कर सके। पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना बड़ी चुनौती है।