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    नई दिल्ली, 4 जून (आईएएनएस)| क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने मंगलवार को कहा कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए आरबीआई द्वारा घोषित नई तरलता की जरूरत साख सकरात्मक है, क्योंकि इससे तरलता की कमी के कारण पैदा होने वाले जोखिम में कमी आएगी। तरलता का अभाव होने से संपत्ति आधारित प्रतिभूतियों (एबीएस) पर दिए गए कर्ज की वसूली की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।

    रेटिंग एजेंसी ने यह टिप्पणी भारत में संपत्ति आधारित प्रतिभूतियों पर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के लिए तरलता राशि अनुपात के विनियमनों में आरबीआई द्वारा किए गए बदलाव पर की है।

    आरबीआई ने घोषणा की थी कि एक अप्रैल 2020 से भारत के गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफआई) के लिए तरलता राशि अनुपात (एलसीआर) लागू होगा।

    एलसीआर में एनबीएफआई को अपनी तरल परिसंपत्ति का स्टॉक बढ़ाना होगा और तरलता प्रबंधन में सुधार लाना होगा। मतलब, वे अल्पकालीन नकदी प्रवाह बनाए रखने में बेहतर ढंग से सक्षम होंगे।

    मूडीज ने कहा, “एनबीएफआई द्वारा जारी भारतीय संपत्ति आधारित प्रतिभूतियों के सौदे के लिए यह साख सकारात्मक है, क्योंकि इससे जोखिम में कमी आएगी। दरअसल, तरलता का अभाव होने से एनबीएफआई प्रभावित होंगे, क्योंकि इससे एबीएस सौदे के कर्ज की वसूली की उनकी क्षमता प्रभावित होगी।”

    एक अप्रैल, 2020 से एनबीएफआई को कम से कम 60 फीसदी एलसीआर बनाए रखना होगा। इसके बाद इसमें चरणबद्ध तरीके से वृद्धि की जाएगी और एक अप्रैल, 2024 से एलसीआर 100 फीसदी हो जाएगा।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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