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    डॉलर बनाम भारतीय रुपया

    वित्तीय साल 2016-17 में भारत की जीडीपी अपने जोरों पर थी। पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही का विकास दर क्रमश 7.2%, 7.4% और 7.0% रहा। सभी महत्वपूर्ण क्षेत्र जैसे विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), निजी क्षेत्र, शेयर बाजार आदि सब तेजी से बढ़ रहे थे। इसके बाद आया, 8 नवंबर का दिन यानी नोटबंदी। देश में मौजूद कुल कैश का 85 फीसदी अवैध हो गया। जनता नोटबंदी से उबर पाती, उससे पहले सरकार ने जीएसटी की घोषणा कर दी।

    नोटबंदी से देश के छोटे व्यापारों की कमर टूट गयी थी। कुछ तो अब तक नहीं उबर पाए हैं। जो लोग कैश के जरिये व्यापार चलाते थे, उनका व्यापार लगभग 2-3 महीने के लिए पूरी तरह से मंदा हो गया था। विनिर्माण क्षेत्र में भी इसका असर देखने को मिला। परिणाम, साल 2016-17 की अंतिम तिमाही में जीडीपी विकास दर गिरकर 6.1 फीसदी हो गयी थी।

    इसके तुरंत बाद मार्च 2017 के महीने में केंद्र सरकार ने जीएसटी लागु करने की घोषणा कर दी थी। व्यापरियों के पास पुराना माल पड़ा था, जिसे जल्द से जल्द बाहर निकालना था। जीएसटी की वजह से मई-जून के महीनों में उत्पादों का निर्माण भी बड़ी मात्रा में नहीं किया गया था। जीएसटी के आने से बाजार को एक साल में दूसरा बड़ा झटका लगा। मुख्य रूप से निर्माण क्षेत्र में, जहाँ निर्माताओं को अब हर कदम पर जीएसटी देना पड़ रहा था। परिणामस्वरूप, जीडीपी विकास दर और नीचे गिरकर 5.7 फीसदी रह गयी थी।

    जहाँ सिर्फ दो तिमाही पहले जीडीपी 7.4 फीसदी की दर से विकास कर रहा था, वह लगभग 2 फीसदी नीचे गिर गया था। केंद्र सरकार घेरे में थी। नोटबंदी और जीएसटी को सरकार की दो ऐसी गलतियां बतायी गयी, जिससे देश कभी उभर नहीं सकता था। इसके बाद कल 30 नवंबर 2017 को साल की दूसरी तिमाही का विकास दर की घोषणा की गयी। यह बढ़कर 6.3 फीसदी हो गयी है।

    जीडीपी में विकास से बड़ी सुखद खबर यह है कि जिन क्षेत्रों में भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर माना जा रहा था, उन्ही में भारी विकास देखने को मिला है। उदाहरण के तौर पर विनिर्माण क्षेत्र में भारी विकास देखने को मिला है। शेयर बाजार नयी ऊंचाइयां छू रहे हैं। खादान, बिजली, ऑटो-मोबाइल सभी क्षेत्रों में राहतपूर्ण विकास देखने को मिला है।

    यहाँ हम विकास दर के आंकड़ों की बात करते समय जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडेड) नामक एक शब्द का इस्तेमाल करेंगे जिसका मतलब है, सकल मूल्य वर्धित अर्थात एक निर्धारित जगह में सभी उत्पादों का कुल मूल्य।

    साल की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में जीवीए था 1.2%, जो इस तिमाही में बढ़कर 7% हो गया है। हालाँकि यह पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा नहीं है, जब विनिर्माण में जीवीए दर 7.7 फीसदी थी, लेकिन हाल के समय में सरकार द्वारा उठाये गए कड़े क़दमों को देखते हुए यह एक शानदार विकास दर है।

    खनन, बिजली आदि क्षेत्रों में भी जीवीए दर काफी सराहनीय रही। खनन और उत्खनन के क्षेत्र में जीवीए विकास दर 5.5 फीसदी रही जो साल 2015-16 के बाद से सबसे ज्यादा है। बिजली और गैस आदि के क्षेत्र में विकास दर 7.6 फीसदी रही जो पिछले साल इसी समय सिर्फ 5.1 फीसदी थी।

    कमर्शियल वाहनों की बिक्री में 21 प्रतिशत का विकास हुआ है वहीँ सिविल एवीएशन के उत्पादों में 18.9 फीसदी का जीवीए विकास दर देखने को मिला है।

    अब बात करते हैं, निर्माण क्षेत्र यानी कंस्ट्रक्शन विभाग की। निर्माण क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था का एक कमजोर क्षेत्र माना गया था जिसमे सुधार की जरुरत थी। पहली तिमाही में निर्माण क्षेत्र में विकास दर 2 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 2.6 फीसदी हो गयी है।

    निर्माण क्षेत्र में विकास को अच्छे से समझने के लिए हमें सीमेंट निर्माण के आंकड़ों को देखना होगा। देश में मौजूद सभी बड़ी सीमेंट कंपनियों की विकास दर 10 फीसदी से ऊपर ही रही है। ऐसीसी और अल्ट्राटेक सीमेंट का विकास दर 18 फीसदी रहा। इसके अलावा अम्बुजा सीमेंट और जेके लक्ष्मी सीमेंट ने भी 10 फीसदी से ज्यादा की दर पर विकास किया।

    जाहिर है भारत में निर्माण क्षेत्र को तेजी से विकास की जरूरत है। हर बड़ी अर्थव्यवस्था निर्माण के बलबूते पर ही बड़ी बनी है, चाहे वह चीन हो या फिर अमेरिका। भारत सेवा विभाग और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में तो जरूर तरक्की कर रहा है, लेकिन यदि लम्बे समय के लिए देश को मजबूत अर्थव्यवस्था बनकर रहना है, तो विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत बनाना होगा।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।