भारत में चीनी राजदूत लुओ ज़हाओहुई ने सुझाव दिया कि “भारत और चीन को मैत्री संधि और द्विपक्षीय व्यापार संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए चर्चा करनी चाहिए। साथ ही सीमा विवाद के समाधान के लिए जल्द कोशिश करनी चाहिए और चीन-भारत सहयोग मॉडल पर कार्य करना चाहिए।”
लुओं को चीनी सरकार ने उपविदेश मंत्री के पद पर नियुक्त करने का ऐलान किया है और इसलिए वह अपने तीन साल के उतार-चढ़ाव के कार्यकाल के बाद भारत से वापस लौट जायेंगे। चीनी अखबार में प्रकाशित उनके लेख में सिनो-भारत सम्बन्धो के लिखा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के लिए दोनों मुल्क तैयारियां कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि “शी और पीएम मोदी ने वुहान के बाद तीन दफा मुलाकात की है और एक साल में करीब तीन चीनी मंत्रियों ने भारत की यात्रा की है। मौजूदा समय में 1000 चीनी कंपनियां भारत में कारोबार कर रही है और उन्होंने 100000 नौकरियों का सृजन किया है। शाओमी, वीवो, ओप्पो और अन्य चीनी मोबाइल फ़ोन ब्रांड्स का भारत के आधे बाजार पर कब्ज़ा है।”
उन्होंने लिखा कि “दोनों देशों के मध्य कई संवेदनशील मसले भी है जैसे भारत ने बीआरआई आयोजन का बहिष्कार किया था और इसके आलावा पाकिस्तानी स्थित आतंकवादी मसूद अज़हर को यूएन की वैश्विक आतंकी की सूची में शामिल करना। बीजिंग और नई दिल्ली अपने विकासशील विचारो को साझा कर सकते थे जैसे बीआरआई, बांग्लादेश, चीन, भारत, म्यांमार गलियारा और भारत की पूर्वी नीति।”
उन्होंने सुझाव दिया कि “भविष्य में दोनों देशों को चार प्रमुख पहलुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसमें भारत- चीन को मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षार, मुक्त व्यापार समझौते का विस्तार, सीमा विवादों के मसले पर बातचीत और बीआरआई व भारत की राष्ट्रीय विकास रणनीतियों की वास्तविकता को पहचानना होगा।”
उन्होंने कहा कि “मतभेदों पर नियंत्रण करना महत्वपूर्ण है, संयुक्त विशवास को बढ़ाना, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और संयुक्त तौर पर चीनी-भारतीय समुदाय के भाग्य का प्रचार करना चाहिए। भारत उन देशों में शुमार है जिन्होंने साल 1949 में चीन की मौजूदगी को मान्यता दी थी।”
लुओं ने कहा कि “नई दिल्ली और बीजिंग इस वर्ष कूटनीतिक सम्बन्धो की 70 वीं वर्षगाँठ का जैश मनाएंगे। यह एक असाधारण वर्ष है। दोनों देशों को अतीत से सबक सीखना चाहिए, मौजूदा संबंधों के ट्रेंड को समझना चाहिए और व्यवहारिक सहयोग का विस्तार करना चाहिए।”