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    श्रीलंकाई बंदरगाह

    श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ गहरे समुन्द्र में स्थित कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए समझौते के करार का ऐलान किया है। भारत-जापान की परियोजना चीन की विवादस्पद 50 करोड़ डॉलर की परियोजना के कुछ ही दूरी पर है।

    कोलोंबो पेज के मुताबिक श्रीलंका के बंदरगाह विभाग ने कहा कि “तीनो देशों के बीच सहयोग के ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षार हो चुके हैं जिसके तहत कोलोंबो बंदरगाह में स्थित पूर्वी टर्मिनल को विकसित किया जायेगा।”

    उन्होंने कहा कि “टर्मिनल को संचालित करने वाली कंपनी को 51 प्रतिशत होगा जबकि शेष भारत और जापान सरकार के अधीन होगा।” प्रोजेक्ट की लागत के बाबत कोई जानकारी नहीं दी गयी है। एसएलपीए ने बयान में कहा कि “यह एमओसी श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग और राष्ट्रीय हितो की क्षमता को बरक़रार रखने को प्रदर्शित करती है।”

    चीन कोलोंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल के 85 फीसदी हिस्से का मालिक है और शेष 15 प्रतिशत पर एसएलपीए का हक़ है। यह साल 2013 में शुरू हुआ था। एसएलपीए ने कहा कि “कोलोंबो द्वारा संभाले गए 70 प्रतिशत ट्रांसशिपमेंट भारत के आयात-निर्यात कार्गो होते हैं।

    दिसंबर 2017 में श्रीलंका भारी भरकम चीनी कर्ज को चुकता करने में असमर्थ रहा था और इसके कारण उसने एक अन्य बंदरगाह को चीनी कंपनी के सुपुर्द कर दिया था इसने स्थानीय और विदेशों में चिंताओं को बढ़ा दिया था। 1.12 अरब डॉलर की डील का ऐलान जुलाई 2016 में हुआ था जिसके तहत हबनटोटा बंदरगाह चीनी कंपनी को 99 वर्षों के लिए दिया जा रहा है।

    भारत और अमेरिका दोनों ने हबनटोटा पर चीनी अधिकार के प्रति चिंता व्यक्त की थी। यह कोलोंबो के दक्षिण से 240 किलोमीटर की दूरी पर है। चीन इस बंदरगाह में सैन्यकरण कर सकता है। श्रीलंका ने बताया था कि उसके बंदरगाहों का इस्तेमाल सैन्य मंसूबो के लिए नहीं किया जायेगा।

    चीनी पनडुब्बियों ने साल 2014 में चीनी प्रबंधित सीआईसीटी में अवैध तरीके से प्रवेश किया था और भारत ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया था। इसके बाद श्रीलंका ने पनडुब्बियों को भ्रमण की अनुमति नहीं दी थी।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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