पोप फ्रांसिस ने म्यांमार दौरे के दूसरे दिन म्यांमार की नेता आंग सान सू की से मुलाकात की। सू की के साथ बैठक के बाद पोप फ्रांसिस ने अपने भाषण में ‘रोहिंग्या’ नाम का जिक्र नहीं किया है।
पोप फ्रांसिस म्यांमार दौरे के दौरान रोहिंग्या के नाम को लेने से बच जाते है लेकिन रोहिंग्या की जगह पोप ने न्याय और सम्मान का बनाए रखने का आग्रह किया है। पहले लग रहा था कि वो रोहिंग्या का नाम ले सकते है लेकिन उन्होने नहीं लिया।
पोप ने प्रत्येक जाति और उसकी पहचान के लिए सम्मान का आग्रह किया और न्याय और मानवाधिकारों के प्रति सम्मान सुनिश्चित करने के लिए म्यांमार की सरकार को कहा।
म्यांमार नेता आंग सान सू की से मुलाकात के बाद पोप फ्रांसिस ने कहा कि देश में नागरिक संघर्ष और शत्रुता बहुत लंबे समय से चल रहे है जिस वजह से ये गहरे विभाजन बना चुके है।
पोप ने एकता का संदेश दिया
पोप फ्रांसिस ने कहा कि धार्मिक मतभेद होने पर विभाजन या अविश्वास नहीं होना चाहिए। बल्कि एकता, क्षमा, सहिष्णुता और बुद्धिमान को राष्ट्र के निर्माण में प्रयोग करना चाहिए।
वहीं इससे पहले म्यांमार नेता ने रोहिंग्या संकट को एक चुनौती के रूप में परिभाषित किया था और दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था।
गौरतलब है कि सभी को लग रहा था कि पोप फ्रांसिस म्यांमार दौरे के दौरान खुलकर रोहिंग्या का नाम लेंगे और पुरजोर तरीके से उनके हितों की बात करेंगे। पोप ने रोहिंग्या मुद्दे को लेकर अप्रत्यक्ष तरीके से अपनी बात कही।
क्योंकि म्यांमार के अल्पसंख्यक कैथोलिक समुदाय ने पहले ही वेटिकन सिटी को बता दिया था कि अगर पोप बौद्ध बाहुल्य म्यांमार में आकर रोहिंग्या का नाम लेते है तो इसका खामियाजा म्यांमार के ईसाईयो को भी उठाना पड़ सकता है। आशंका जताई थी कि पोप के ऐसा करने पर बौद्ध धर्म के अगले निशाने पर ईसाई आ सकते थे।