Mon. Dec 23rd, 2024
    गुजरात के आदिवासी समुदाय

    गुजरात विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियां भले ही भारी बहुमत से जीतने के दावे कर रहीं हो लेकिन कुछ सीटें ऐसी भी है जहां मुकाबला दोनों के लिए एक समान है। जीत किसकी होगी यह कहना एक जटिल प्रश्न है। सबसे ज्यादा असमंजस है गुजरात विधानसभा की 26 आरक्षित सीटों को लेकर।

    यह सभी 26 सीटें जो इस विधानसभा चुनाव में आरक्षित है वो गुजरात के करीब 15% आबादी आदिवासियों के लिए है। इन आदिवासियों पर किसी एक पार्टी का एकतरफा दबदबा नहीं है, बात इसलिए भी गौर करने लायक है क्यूंकि ओवरआल 35 से 40 सीटों पर आदिवासी वोटरों का प्रभाव देखने को मिलता है।

    आदिवासियों ने 2012 के चुनाव में कांग्रेस को जीत का ताज पहनाया था। उस समय माना जा रहा था कि कांग्रेस इन लोगों की मुद्दों और परेशानियों को समझने में सफल रहीं और इसलिए अब यहां से कांग्रेस को हटाना मुश्किल होगा। लेकिन ठीक दो साल बाद आदिवासियों का मन बदल गया और 2014 के चुनाव में उन्होने यहां से बीजेपी को जीत का स्वाद चखा दिया। कभी कांग्रेस की सबसे विश्वासपात्र वोटबैंक रहीं अनुसूचित जातियां और जनजातियां पिछले 27 सालों से बिखर सी गयी है।

    इन सीटों की महत्वता बीजेपी जानती है और इसलिए यहां के लोगो के दिल में जगह बनाने के लिए पार्टी तरह तरह के उपाय करती रहती है। आदिवासी समाज से जुड़ने के लिए ही बीजेपी ने पिछले साल के दिसंबर महीने में आदिवासी गौरव यात्रा का आयोजन किया था। इन इलाकों में सरकार की पकड़ मजबूत नहीं मानी जाती है।

    पिछले कई सालों से सरकार यहां कई मुद्दों पर विफल बताई जाती है लेकिन राष्ट्रीय सेवक संघ ने यहां बहुत ही उम्दा प्रदर्शन किया है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि मतदाताओं को लुभाने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई प्रयास किये है। वांसदा में उनकी रैली भी इसी रणनीति का हिस्सा मानी जाती है। इतना ही नहीं केंद्र सरकार की मदद से संघ यहां सैनिक स्कूल खोलने जा रही है।

    इन सबके बावजूद यहां मुकाबला बीजेपी के लिए भी बहुत कठिन है, कांग्रेस जिला प्रमुख किशनभाई पटेल की बातों को माने तो यहां आदिवासी समुदाय बीजेपी के लोकलुभावन वादों से परेशान है और इसलिए इस चुनाव में बीजेपी को मत मिलने के कोई आसार नहीं है।