मध्य प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर मतदान के साथ चुनाव पूरे हो जाएंगे और 29 सीटों का तीन दिन तक विश्लेषण चलेगा। अंतिम चरण में मालवा-निमाड़ का मिजाज देखना होगा। हालाकि देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, इंदौर, खरगोन, खंडवा के मतदाताओं की खामोशी ने पूरे प्रदेश में लहर, तूफान या आंधी जैसे शब्दों पर विराम लगा दिए हैं।
निश्चित ही मतदाता देख, सुन और समझ सब रहा है लेकिन बोलने से बच रहा है। जाहिर है इस बार मतदाता नहीं नतीजे बोलेंगे 23 मई को।
देवास (अनुसूचित जाति) लोकसभा सीट में सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में है। दोनों ही प्रत्याशी नए हैं। जहां कांग्रेस ने पद्मश्री से नवाजे गए प्रहलाद टिपानिया (कबीर के भजनों के अंतर्राष्ट्रीय गायक) को उतारा है, तो वहीं भाजपा ने कांग्रेस के न्याय का जवाब देने सिविल जज की नौकरी छोड़कर राजनीतिज्ञ बने महेंद्र सिंह सोलंकी पर दांव आजमाया है।
बलाई समाज के करीब साढ़े 3 लाख वोटों पर दोनों की निगाहों ने इसी समाज के प्रत्याशी पर दांव लगाया है। यहां 24.29 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति तथा 2.69 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की है। 2009 परिसीमन से पहले सीट का नाम शाजापुर था बाद में कुछ विधानसभाएं जोड़ी गईं तो कुछ हटाई गईं लेकिन मतदाताओं का मिजाज नहीं बदला। अब तक 3-3 बार जनसंघ और कांग्रेस 7 बार भाजपा और 1 बार भारतीय लोकदल को जीत मिली। जीत का अंतर सबसे कम 1.2 प्रतिशत 1957 में तो सबसे ज्यादा 24.5 प्रतिशत 2014 में रहा। बावजूद इसके विधानसभा में अच्छा प्रदर्शन न करने के चलते मौजूदा सांसद मनोहर ऊंटवाला का टिकट कटने की चर्चाएं हैं। 8 विधानसभा क्षेत्रों में शाजापुर, कालापीपल, सोनकच्छ, हाटपिपल्या में कांग्रेस तो आगर, आष्टा, शुजालपुर, देवास में भाजपा काबिज है।
उज्जैन (अनुसूचित जाति) सीट यूं का गढ़ मानी जाती है। महाकाल की नगरी है और द्वादश ज्योर्तिलिंगों में एक है। एक मिथक भी है कि जो सरकार सिंहस्थ कराती है उसकी विदाई हो जाती है। यहां मुकाबला रोचक है। भाजपा ने मौजूदा सांसद चिंतामणि मालवीय के स्थान पर युवा चेहरा अनिल फिरोजिया जो खटीक समाज से हैं को आगे रख विधानसभा चुनावों की गलती को ढकने की कोशिश की है।
वहीं, कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और बलाई समाज जो अक्सर निर्णायक होता है, के बाबूलाल मालवीय को चुनावी रण में उतारकर भाजपा से यह सीट छीनने की रणनीति तैयार की है। यहां 26 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति तथा 2.3 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की है। कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी दोनों ही पूर्व विधायक हैं, लेकिन लोकसभा के चुनाव में पहली बार आमने सामने हैं। अब तक भाजपा 7 कांग्रेस 5 जनसंघ 2 तथा 1 बार लोकदल ने चुनाव जीता है। यहां 8 विधानसभा क्षेत्रों में नागदा-खाचरौद, बड़नगर, आलोट, तराना, घट्टिया में कांग्रेस तो महिदपुर, उज्जैन दक्षिण, उज्जैन उत्तर में भाजपा काबिज है।
मंदसौर (सामान्य) सीट बेहद हाईप्रोफाइल है। यह हिंदू और जैन मंदिरों के लिए भी विख्यात है। यहां राहुल ब्रिगेड की मीनाक्षी नटराजन कांग्रेस से जबकि भाजपा से मौजूदा सांसद सुधीर गुप्ता हैं। आरएसएस के गढ़ मंदसौर में 14 में 11 चुनाव भाजपा जीती तो केवल 3 कांग्रेस जीत पाई। यहां 16.78 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति तथा 5.36 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की है।
प्याज और लहसुन उत्पादक किसानों के चलते मंदसौर चर्चाओं में रहता है। उपज की कीमत नहीं मिलने से 50 पैसे प्रति किलो भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में प्याज की सड़न या धांस क्या गुल खिलाएगी नहीं पता, क्योंकि इसी प्याज ने दिल्ली की सत्ता भी बदलवाई है।
किसान आंदोलन के दौरान 6 जून, 1917 को पुलिस की गोलियों से 6 किसानों की मौत के बाद भी 8 विधानसभा सीटों में 7 पर भाजपा की जीत काफी कुछ कहती है। विधानसभा जावरा, नीमच, मंदसौर, गरोठ, जावद, मल्हारगढ़, मनासा में भाजपा तो केवल सुवासरा में कांग्रेस काबिज है। यकीनन यह समीकरण काफी मायने रखते हैं बस देखना यह है कि आंकड़े किस तरह के नतीजों में तब्दील होते हैं।
रतलाम (अनुसूचित जनजाति) लोकसभा सीट को 2009 से पूर्व झाबुआ नाम से जाता था। यह नमकीन के लिए प्रसिद्ध है। यहां 73.54 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति तथा 4.51 प्रतिशत अनुसूचित जाति की है। कांग्रेस का मजबूत गढ़ है। 14 बार कांग्रेस तो 2 बार भाजपा को जीत मिली। पांच बार के सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के दबदबे वाली सीट पर कांग्रेस से वो ही उम्मीदवार हैं, जबकि भाजपा ने इंजीनियर से नेता बने एस डामोर को उतारा है, जिन्होंने कांतिलाल के बेटे विक्रांत भूरिया को 2018 के विधानसभा चुनाव में करीब 10 हजार मतों से हराया था। अब लोकसभा चुनाव में विक्रांत के पिता उनके सामने हैं।
कांग्रेस में कुछ गुटबाजी है तो मतदाताओं में इंदौर-दाहोद, गोधरा मक्सी रेल लाइन तथा इंदौर-अहमदाबाद फोरलेन का काम पूरा नहीं होने की नाराजगी भी। अब मतदाता किसे चुनते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। आठ विधानसभा क्षेत्रों में जोबट, अलीराजपुर, पेटलावद, थांदला और सैलाना पर कांग्रेस तो झाबुआ, रतलाम ग्रामीण और रतलाम शहर पर भाजपा का काबिज है।
धार (अनुसूचित जनजाति) लोकसभा सीट महत्वपूर्ण है। धार को परमार राजा भोज ने बसाया वहीं बेरन पहाड़ियां और झीलों तथा हरे-भरे वृक्षों ने खूबसूरत बनाया। 1967 से अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस 7 बार 3-3 बार जनसंघ और भाजपा तथा 1 बार भारतीय लोकदल जीती। भाजपा ने मौजूदा सांसद सावित्री ठाकुर की जगह दो बार सांसद रहे छतरसिंह दरबार को जबकि कांग्रेस ने दिनेश गिरवाल को प्रत्याशी बनाया है जो जिला पंचायत से बड़ा कोई चुनाव नहीं लड़े हैं। कांग्रेस ने 3 बार सांसद रहे गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी का टिकट काटा है।
मजेदार यह कि 2014 में भाजपा सारे विधानसभाओं में 1 लाख 4 हजार 328 मतों से जीती जबकि हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से 2 लाख से ज्यादा मत मिले। इसी आंकड़े के सहारे जीत का मैजिक ढ़ूढ़ा जा रहा है। यहां 51.42 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति 7.66 प्रतिशत अनुसूचित जाति की है।
एक मिथक यह भी है कि यहां के पश्चिमी आदिवासी अंचल डही में विधानसभा चुनाव में जो प्रत्याशी हेलीकॉप्टर से, जिसे यहां उड़नखटोला या चील गाड़ी कहते हैं, से आया वही जीता। लोकसभा में पहले कभी कोई नहीं आया। कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा यहां से जीतती रही।
पिछले तीन नतीजे बताते हैं कि मतदाताओं ने एक पार्टी को दोबारा मौका नहीं दिया। आठ विधानसभा क्षेत्रों में सरदारपुर, मनवार, बदनावर, गंधवानी, धरमपुरी, कुक्षी में कांग्रेस तो डॉ.अंबेडकरनगर-महू तथा धार में भाजपा काबिज है। निश्चित ही मुकाबला कड़ा लेकिन दिलचस्प होगा।
इंदौर (सामान्य) लोकसभा सीट सुमित्रा महाजन के चलते हमेशा सुर्खियों में रही। इंदौरी भी मानते हैं कि यह चुनाव महज रस्म अदायगी है। नरेंद्र मोदी और प्रियंका के रोड शो के बाद कार्यकर्ताओं में थोड़ा जोश जरूर दिखा लेकिन सच यह है कि सांसदी की दौड़ में भाजपा और कांग्रेस के निगम पार्षदी चुनाव जीते प्रत्याशी मैदान में हैं। कांग्रेस ने पंकज सिंघवी पर दांव खेला है जो 21 साल बाद दोबारा लोकसभा मैदान में हैं और 1998 में सुमित्रा महाजन से 49852 मतों से हारे थे।
यहां 16.75 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति 4.21 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति की है। भाजपा ने शंकर लालवानी को टिकट दिया जिन्हें ताई का उत्तारधिकारी बता मोदी के नाम पर वोट मांगा जा रहा है। कांग्रेस ने इंदौर के विकास का घोषणापत्र जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, यातयात खेल, इंदौर मेट्रो सहित इंफ्रास्ट्रक्च र व अन्य मुद्दों पर अपना विजन रख मतदाताओं का भरोसा जीतने की कोशिश की है।
मप्र की वाणिज्यिक राजधानी कहलाने वाले इंदौर में 8 विधानसभा क्षेत्रों में छह – महेश्वर, पानसेमल, कसरावद, सेंधवा, खरगोन, राजपुर में कांग्रेस तो 1-1 बड़वानी और भगवानपुरा पर भाजपा और निर्दलीय काबिज हैं। विधानसभा में सफलता के चलते कांग्रेस उत्साहित है, लेकिन भाजपा भी 1989 से लगातार जीतने का रिकॉर्ड बरकरार रखना चाहती है।
खरगोन (अनुसूचित जनजाति) सीट भारत को उत्तर से दक्षिण में जोड़ने वाले रास्ते पर बसा है। यहां से कांग्रेस के डॉ. गोविंद मुजाल्दा तो भाजपा के गजेंद्र पटेल के बीच मुकाबल है। यहां से अब तक भाजपा 7, कांग्रेस 5, जनसंघ 2 और भारतीय लोकदल ने 1 बार जीत हासिल की है। अमूमन कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला रहा है, लेकिन 2 बार से लगातार भाजपा काबिज है और हैट्रिक की कोशिशें जारी है।
यहां 53.56 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की और 9.02 प्रतिशत अनुसूचित जाति की है। देपालपुर, इंदौर-1, सांवेर, राऊ में कांग्रेस तो इंदौर-2, इंदौर-3, इंदौर-4 और इंदौर-5 में भाजपा काबिज है। नतीजे बताएंगे कि खरगोन किसके साथ जाता है।
खंडवा (सामान्य) लोकसभा सीट नर्मदा और ताप्ती नदी घाटी के मध्य है। ओमकारेश्वर पवित्र दर्शनीय स्थल है जो भारत के 12 ज्योतिर्लिगों में शामिल है। फिल्म अभिनेता कुमार किशोर कुमार की जन्म स्थली भी है। इसका पुराना नाम खांडववन था जो धीरे-धीरे खंडवा हो गया। यहां पर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा। सबसे ज्यादा जीतने वाले भाजपा के नंदकुमार चौहान हैं जो फिर भाजपा के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव को मैदान में उतारा है।
दिलचस्प यह कि दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं। यहां 35.13 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति 10.85 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति की है। कांग्रेस को 7 तो भाजपा को 6 तथा 1 बार भारतीय लोकदल को जीत मिली। 8 विधानसभा सीटों में मंधाता, बड़वाह, नेपानगर, भीकनगांव में कांग्रेस तो खंडवा, पंधाना, बागली में भाजपा तथा बुरहानपुर में निर्दलीय काबिज हैं। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला होता रहा।
देश के साथ मप्र में भी अंतिम चरण के चुनाव के साथ ही अब किसकी होगी सरकार, के कयास लगने शुरू हो जाएंगे। यह पहला आम चुनाव है, जिसमें मुद्दे कम और विवाद ज्यादा रहे। भाषाई मर्यादा भी खूब लांघी गई। लोकतंत्र के लिहाज से यह बेजा था। आगे ऐसा न हो यह मंथन का विषय है, ताकि लोक के हाथों तंत्र सुरक्षित रहे। बस देखना यही है कि 23 मई को भारतीय लोकतंत्र क्या गढ़ता है!