नई दिल्ली, 3 मई (आईएएनएस)| भारत मौसम विज्ञान विभाग का अनुमान है कि इस साल मॉनसून लगभग सामान्य रह सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे देश के किसानों की समस्या का निदान हो पाएगा।
दरअसल, देश के कई इलाकों में पानी का संकट छाया हुआ है और जलवायु परिवर्तन के कारण देश में बारिश के असमान वितरण से यह संकट और गहराता जा रहा है।
जल संसाधन मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी साप्ताहिक रिपोर्ट के अनुसार, दो मई, 2019 को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 40.592 बीसीएम जल संग्रह हुआ, जोकि इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 25 प्रतिशत है। इससे पहले 25 अप्रैल, 2019 को समाप्त हुए सप्ताह में जल संग्रह 26 प्रतिशत के स्तर पर था।
मॉनसून की बारिश देशभर के जलाशयों में जल संग्रह का मुख्य जरिया है। यही कारण है कि मॉनसून की बारिश से न सिर्फ खरीफ फसलों के लिए (मॉनसून के दौरान उगाई जाने वाली फसल) जरूरी होती है, बल्कि इससे रबी फसल के लिए भी पानी का संग्रह होता है।
इसलिए मॉनसून के सामान्य के करीब रहने के अनुमान से किसानों के मन में अच्छी फसल की आशा जरूर जगी होगी, लेकिन मॉनसून के शुरुआती चरण में जून-जुलाई के दौरान अगर अच्छी बारिश नहीं होती है तो फिर कपास, मक्का, धान, सोयाबीन जैसी प्रमुख फसलों की बुवाई समय पर नहीं हो पाएगी।
निजी मौसम अनुमानकर्ता स्काइमेट की माने तो जून और जुलाई में अलनीनो का प्रभाव ज्यादा रहेगा, लेकिन अगस्त-सितंबर में इसका प्रभाव कम होगा। अलनीनो का प्रभाव रहने से जून-जुलाई में कम बारिश होने की संभावना है।
स्काइमेट ने तो मॉनसून के सामान्य से कम रहने का अनुमान जारी किया है, लेकिन आईएमडी का अनुमान है कि मॉनसूनी बारिश सामान्य रहेगी।
आईएसडी ने जहां मॉनसून के दौरान 96 फीसदी बारिश का अनुमान लगाया है, वहीं स्काइमेट का अनुमान 93 फीसदी है।
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो मॉनसून के सामान्य के करीब रहने से भी किसानों की समस्या का समाधान नहीं होने वाला है। उनके अनुसार, बारिश के असमान वितरण का जो पिछले कुछ साल से पैटर्न देखा जा रहा है, उससे लगता नहीं है कि मॉनसून की बारिश अच्छी होने के बावजूद खेती के लिए पानी का संकट दूर होने वाला नहीं है।