पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ की जमानत की समयसीमा बढ़ाने की याचिका को खारिज कर दिया है और इसमें स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया गया था। पाकिस्तान में तीन दफा के वजीर-ए-आलम को 24 दिसंबर के अदालत ने अल अज़ीज़िया गबन मामले में सात वर्ष के कारावास की सज़ा सुनाई थी।
26 मार्च को पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता नवाज़ शरीफ को स्वास्थ्य कारणों के चलते तीन सप्ताह को जमानत दे दी थी हालाँकि उन्हें मुल्क छोड़ने की इजाजत नहीं थी और जमानत की समयसीमा 7 मई को खत्म हो रही है। 25 अप्रैल को नवाज़ शरीफ ने दोबारा स्वास्थ्य का हवाला देकर जमानत को बढ़ाने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की थी।
उनकी जमानत याचिका पर तीन संवैधानिक जजों की पीठ ने सुनवाई की थी जिसमे मुख्य न्यायाधीश आसिफ सईद खोसा भी शामिल थे। जिन्होंने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया था। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “याचिकाकर्ता की याचिका प्रदर्शित करती है कि उनकी जान को कोई खतरा नहीं है।”
उन्होंने कहा कि “पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का जेल में भी इलाज संभव है और जरुरत के दौरान उन्हें अस्पताल में दाखिल करने का अधिकार अधीक्षक को प्राप्त है।”
साल 2018 में आरोप सिद्ध हो जाने के बाद वह लाहौर के कोट लखपत जेल में कैद है। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने साल 2017 में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों सुनवाई करते हुए सत्ता से बेदखल कर दिया था, इस सुनवाई की जड़े पनामा पेपर मामले से जुड़ी हुई थी।
नवाज़ शरीफ हृदय की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। नवाज़ शरीफ के डॉक्टर अदनान खान ने कहा कि उनकी हालत काफी खराब है और उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री का जेल में मुनासिब इलाज मुमकिन नही है क्योंकि उन्हें हृदय संबंधित गंभीर बीमारी है।