चीन की राजधानी में महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का सफलतापूर्वक अंत हुआ लेकिन भारत के पड़ोसी मुल्क में इस परियोजना के समक्ष चुनौतियों का पहाड़ बढ़ रहा है। पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल शुरुआत में बीआरआई के तहत हस्ताक्षर किये प्रोजेक्टों में सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अपना रहे हैं।
चीन-पाक आर्थिक गलियारे के कारण बीआरआई परियोजना का पाकिस्तान मुखपृष्ठ है। इस्लामाबाद ने 14 अरब डॉलर की डीअमेर-भाषा बाँध परियोजना से अपना पल्ला झाड़ लिया है क्योंकि इसमें बीजिंग ने कठोर मौद्रिक शर्ते लागू की थी।साल 2017 में लांच होने के बाद समस्त विश्व में इसकी आलोचना हुई है। इसमें वित्तीय अपारदर्शिता और पर्यावरण के प्रतिकूल था।
चीन विशेषज्ञ श्रीकांत कोंडपल्ली ने कहा कि “इसके कई कारण है कि क्यों यह देश अब सावधानीपूर्वक रवैया अख्तियार कर रहे हैं। इसी कारण इस बार चीनी राष्ट्रपति ने बीआरआई के प्रति समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है। कर्ज वापसी में पारदर्शिता की कमी है, वित्तिय मदद तक पंहुच और पर्यावरण मानकों में परेशानी के कारण देश अपनी रणनीति के बाबत दोबारा सोच रहे हैं।”
पाकिस्तान के साथ विवाद
तीन दिनों के आयोजन में 37 देशों के प्रमुखों ने शिरकत की थी। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अनुसार, 64 अरब डॉलर के समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं। इमरान खान ने इस वर्ष बैठक में शिरकत की थी लेकिन संतुष्ट नजर नहीं आये थे क्योंकि चीन पाकिस्तान को बाढ़ का प्रोजेक्ट बहाल करने के लिए मनाने में विफल रही थी।
पाकिस्तान में चीनी दूतावास के प्रमुख लीजियन ज़हाओ ने ट्ववीट कर इमरान खान की आलोचना की थी और कहा कि “जब तक देश के मंत्रालय, विभाग और संस्थान अपनी कार्य को ठीक नहीं करते, चीन के अकेले सहयोग से कोई चमत्कार नहीं हो जायेगा। इमरान खान का विदेशी निवेशकों को न्योता फायदेमंद नहीं होगा जब तक वह कारोबार में दिक्कतों का सामना करना जारी रखेंगे।”
श्रीलंका की कार्रवाई
बीआरआई का एक एक महत्वपूर्ण साझेदार श्रीलंका है और उसने इस साल मंच में शामिल होने से इंकार किया था हालाँकि श्रीलंका ने साल 2017 में आयोजित पहले बीआरआई सम्मेलन में भागीदारी की थी। श्रीलंका के मुताबिक इसका कारण बीते सप्ताह हुए आतंकी हमले थे। बहरहाल, इसका असल कारण हबनटोटा बंदरगाह पर चीन के नियंत्रण के कारण कोलोंबो ने बैठक का बहिष्कार किया था।
नेपाल का मामला
नेपाल अभी भी 56 अरब डॉलर के प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर करने में देरी कर रही है। इसमें क्रॉस बॉर्डर रेलवे भी शामिल है। जून 2018 एक ज्ञापन समझौते पर दस्तखत किए थे और बीआरआई के दूसरे सम्मेलन के दौरान भी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की सम्भावना थी जो मुमकिन नही हुआ था।
दोनो पक्षो ने एक प्रोजेक्ट पर एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार इस समझौते पर वित्तीय चिंताओं और पर्यावरणीय मसलो के जरण हस्ताक्षर करने से भयभीत थी।