कुछ दिनों पहले भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू की आगामी फिल्म ‘सांड की आंख‘ का पोस्टर लांच हुआ था जिसमे वह दुनिया की सबसे उम्रदराज़ महिला चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर के किरदार में नज़र आई थी। तोमर जोहरी कसबे की रहने वाली हैं जो मेरठ शहर के पास है। इसलिए निर्देशक तुषार हीरानंदानी ने वास्तविक स्थान पर शूट करना ही बेहतर समझा। भले ही दोनों अभिनेत्री ने पहली बार ऐसे किसी स्थान पर शूट किया हो लेकिन जब बात फिल्ममेकर्स की आती है तो यूपी का शहर मेरठ उनके लिए नया नहीं है।
जब शाहरुख़ खान, अनुष्का शर्मा और कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्म ‘जीरो‘ का पोस्टर रिलीज़ हुआ था जो सबसे पहले लोगो की नजर मेरठ के आइकोनिक लैंडमार्क घंटा घर पर पड़ी थी। फिल्म में शाहरुख़ का किरदार बउआ सिंह मेरठ का रहने वाला होता है। निर्देशक आनंद एल.राय ने एक हफ्ता शहर में बिताया और फिर मुंबई स्टूडियो में पूरा घंटा घर और आसपास का बाजार बनाया।
आखिरी बार जब कोई स्टार मेरठ में फिल्म सेट पर रहे वो थे अजय देवगन। फिल्म ‘ओमकारा’ (2006) में जब उनका किरदार ओमी, त्यागी हॉस्टल से बाहर निकलता है। निर्देशक विशाल भारद्वाज, जो मेरठ के रहने वाले हैं, उन्होंने कहा-“मुझे अभी भी मेरठ में बिठाये अच्छे दिन याद हैं और मैंने उन्ही यादो का ‘ओमकारा’ बनाते वक़्त इस्तेमाल किया। फिल्म के द्वारा, मैंने मेरठ में अपने पूरे सफर को शब्द दिए।
लेकिन मेरठ का ट्रेंड शुरू हुआ था 2013 में फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ से। फिल्म की शूटिंग उसी शहर में हुई थी और इसमें अरशद वारसी ने मेरठिया वकील का किरदार निभाया था। फिर 2015 में आई फिल्म ‘मेरठिया गैंगस्टर्स’ से फिल्मो की शूटिंग मेरठ में होने लगी। फिल्म में घंटा घर पर शूट हुआ एक्शन सीक्वेंस दृश्य बहुत मशहूर हुआ था।
यहाँ तक कि पिछ्ला साल भी पूरा मेरठ को समर्पित था। सुपरहिट फिल्म ‘बधाई हो’ में कौशिक परिवार मेरठ के ही रहने वाले थे और किरदारों को वहां के स्थानीय खरीबोली लहजे में बोलते देखा गया था। फिल्म में कुछ हिस्सा शहर का भी दिखाया गया था। इसके अलावा, दो फिल्में और एक वेब सीरीज भी फ़िलहाल मेरठ में शूट हो रही है। इसके अलावा, आनंद कुमार की ‘मेरठ जंक्शन’ और तिग्मांशु धूलिया की ‘बेगम सामरू’ बायोपिक भी कुछ सालो से चर्चा में है।
सवाल है, यही शहर क्यों जो क्रिकेट गियर बनाने और अपराधियों को बनाने के लिए जाना जाता है, वह अब बॉलीवुड का इतना चहीता बन गया है। ‘बधाई हो’ लेखक अक्षत घिल्डयाल जिन्होंने अपना स्कूल मेरठ से ही पास किया है, उन्होंने कहा-“अब ये बदल गया है कि छोटे शहरों पर आधारित फिल्में मुख्यधारा बन गयी हैं। मुझे लगता है कि ‘दबंग’ ने ही ऐसी फिल्मो को विश्वसनीयता दी है। इसने बाकि फिल्ममेकर्स को यूपी की कहानियो को खोजने के लिए प्रेरित किया। ये नवीनता है। ऐसा उच्चारण। ऐसी सेटिंग, ऐसी भाषा, हिंदी कमर्शियल सिनेमा में किसी ने अब तक देखी नहीं थी।”
मेरठ ही क्यों?
लेकिन सवाल ये है कि पश्चिम यूपी में मेरठ ही क्यों? मुज़फ्फरनगर या गाज़ियाबाद या बरेली क्यों नहीं? ‘मेरठिया गैंगस्टर्स’ के निर्देशक-लेखक ज़ीशान कादरी ने बताया-“इसका सबसे मुख्य कारण है कि आज के ज्यादातर लेखक इस शहर के हैं। अपने स्नातक के दौरान, मैं यहाँ तीन सालो तक रहा था। आप अपनी ज़िन्दगी से और अपने आसपास की चीज़ो का अवलोकन करके कहानियां लेते हैं।”
आनंद का मेरठ से कोई ताल्लुक नहीं था जब उन्होंने ‘जीरो’ के लिए शोध शुरू किया। उन्होंने कहा कि उनके लिए स्थान नहीं बल्कि व्यक्ति मायने रखता है। उनके मुताबिक, “आप ‘रांझणा’ के कुंदन को देखते हो तो आपको बनारस दिखता है। जब आप बउआ को देखते हो तो आपको मेरठ दिखेगा। वो अकड़ जो मुझे किरदार और कहानी में चाहिए थी, वो मुझे किसी और शहर में नहीं मिलती।”
अक्षत घिल्डयाल का कहना है कि ये ट्रेंड तबतक कही नहीं जाएगा जबतक फिल्म निर्माता इसका दुरुपयोग नहीं करते हैं। उनके मुताबिक, “हमें अभी भी दिल्ली में पंजाबी बोली वाली फिल्में मिलती हैं और वे बनावटी नहीं लगते। यह सब कहानी में उबलता है। यदि यह मांग करता है कि नायक के पास मेरठ का उच्चारण हो और कहानी वहां सेट हो, तो लोगों को बुरा नहीं लगेगा। लेकिन यह जैविक होना चाहिए।”
https://youtu.be/LKCdqYtv-8M