अफगानिस्तान की सरकार इस हफ्ते तालीबान के साथ क़तर में बातचीत के लिए 250 लोगो के प्रतिनिधि समूह को भेजेगा। 18 वर्षों की जंग का अंत करने के लिए यह एक बेहतरीन प्रयास है। हालाँकि तालिबान सीधे अफगान सरकार से बातचीत के लिए इंकार करता रहा है।
अफगान और तालिबान की बैठक
अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रवक्ता हारुन चाखनसुरी ने 16 अप्रैल को कहा कि “अफगान सरकार का दोहा सम्मेलन 19 अप्रैल से 21 अप्रैल तक जारी रहेगा। इसमें सियासी दलों के नेता, स्वतंत्र राजनीतिक चेहरे और सम्बंधित संस्थान और अफगान समाज के सभी भागो के व्यक्तियों का चयन आज कर लिया जायेगा।”
तालिबान ने पूर्व ही स्पष्ट कर दिया है कि अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों में सिर्फ प्राइवेट क्षेत्र के व्यक्ति ही शुमार होने चाहिए और एक भी सरकारी मुलाजिम को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने बयान जारी कर कहा कि “हमने इस सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं को लिखित और मौखिक रूप से स्पष्ट कर दिया है कि काबुल प्रशासन का कोई अधिकारी इस आयोजन में शामिल नहीं होना चाहिए।”
वार्ता है कोई निकाह समारोह नहीं
उन्होंने कहा कि “अगर एक भी काबुल सरकार का प्रतिनिधि शामिल होगा तो वह अपने निजी विचारो से भरा होगा और यहां अपने निजी विचारो को रखेगा इसलिए हम काबुल सरकार के किसी भी मुलाजिम को इसमें शामिल होने की इजाजत नहीं देते हैं।” तालिबान के प्रवक्ता ने प्रतिनिधि समूह में सदस्यों की संख्या का मसला भी उठाया और कहा कि “इस सम्मेलन के मेज़बान के काबुल से अत्यधिक लोगो को स्वीकार करने की कोई योजना नहीं है और ऐसे सम्मेलन में इस तरीके की भागीदारी भी सामान्य नहीं है।”
उन्होंने चेताया कि “यह बैठक एक व्यवस्थित और पूर्वनियोजित है न कि काबुल के किसी होटल में निकाह या किसी अन्य समारोह का जश्न का न्योता है।” अफगान सरकार द्वारा सूची की विपक्षी राजनेताओं ने आलोचना की है। योजना के मुताबिक यदि यह बैठक सफल रही तो यह अफगानी अधिकारीयों और तालिबानी अधिकारीयों के मध्य पहली शान्ति वार्ता की बैठक होगी। साल 2015 में पाकिस्तान में आयोजित बैठक विफल हो गयी थी।
पहली तालिबानी और अफगानी बैठक
दोहा में तीन दिनों की बातचीत के पश्चात अमेरिका ने तालिबान को अफगान सरकार के साथ मुलाकात के लिए राज़ी किया है। अमेरिका के विशेष राजदूत जलमय ख़लीलज़ाद तालिबान के साथ शान्ति वार्ता में जुटे हुए हैं। अफगानी सरकार को तालिबान अमेरिका के हाथो की कठपुतली मानता है और सीधे बातचीत के प्रस्ताव को ठुकराता रहा है।
अशरफ गनी के शान्ति दूत ओमर दौड़जाइ ने कहा कि “अफगान प्रतिनिधि समूह तालिबान के साथ विचार साझा करने के लिए दोहा जायेगा।”