बांग्लदेश ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष गुरूवार को कहा कि वह अब रोहिंग्या शरणार्थियों नहीं दे सकता है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री शाहिदुल हक ने परिषद की बैठक में कहा कि उनके देश में रह रहे लाखो रोहिंग्या शरणार्थियों की देश वापसी का संकट अब अधिक बढ़ चुका है।
बांग्लादेश की मांग
साथ ही बांग्लादेश ने यूएन से निर्णायक कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मुझे परिषद् को यह जानकारी देते हुए खेद हो रहा है कि बांग्लादेश अब अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों को पनाह देने की हालत में नहीं हैं। बांग्लादेश एक समझौते के तहत रोहिंग्या मुस्लिमों को उनके देश वापस भेजने के लिए तैयार हो गया था। लेकिन यूएन ने जोर देते हुए कहा कि सुरक्षा सुनिश्चित होने पर ही रोहिंग्या समुदाय को मुल्क वापस भेजा जाएगा।
विदेश मंत्री ने पूछा कि “क्या बांग्लादेश अपने पड़ोसी मुल्क के उत्पीड़ित अल्पसंखयकों को सहानुभूति जाहिर करने की कीमत अदा कर रहा है।” यूएन के राजदूत ने 5 बार म्यांमार का दौरा करने के बाद कहा कि “शरणार्थियों को वापस भेजने की प्रक्रिया बेहद धीमी है। साथ ही उन्होंने आगाह किया कि म्यांमार में आगामी चुनावों के बाद संकट अधिक गहरा सकता है।”
रोहिंग्या शरणार्थियों पर अत्याचार
म्यांमार के रखाइन प्रान्त से सेना की बर्बरता के कारण रोहिंग्या मुस्लिमों को भागकर अन्य देशों में पनाह लेनी पड़ी थी। इसे दुनिया का सबसे भयावह शरणार्थी संकट करार दिया गया है।
बौद्ध बहुल देश में बौद्धों और रोहिंग्या मुस्लिमों के मध्य झड़प की खबरे आती रहती है। साल 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा रक्तपात नरसंहार के कारण लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को दूसरे देशों में पनाह लेनी पड़ी थी। साल 1948 में ब्रिटेन की हुकूमत से म्यांमार की आज़ादी का ऐलान किया गया था, लेकिन देश इसके बाद से ही संजातीय विवादों की स्थिति से जूझ रहा है।
यूएन जांचकर्ताओं ने म्यांमार में नरसंहार के लिए कट्टर राष्ट्रवादी बौद्ध संत और सेना को जिम्मेदार ठहराया था। नेता अंग सान सु की की सरकार ने सेना के साथ सत्ता साझा करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ चुप्पी साधने के कारण उनकी काफी आलोचनायें हुई थी।