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    "हँसते आंसू"-हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म जिसे सीबीएफसी ने 'ए' सर्टिफिकेट दिया

    जबकि आज के सिनेमा प्रेमी अक्सर फिल्म निर्माताओं को सेंसर बोर्ड से ‘यू / ए’ सर्टिफिकेट के साथ अपनी फिल्मों को प्रमाणित करने के लिए कहते हैं, हम आपको सेंसर बोर्ड द्वारा ‘ए’ सर्टिफिकेट प्राप्त करने वाली पहली फिल्म के बारे में बताते हैं।

    वक़्त था 1950 का जब मधुबाला और मोतीलाल अभिनीत फिल्म “हँसते आंसू” को सीबीएफसी से ‘ए’ सर्टिफिकेट मिला था। फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिलने का मतलब होता है कि फिल्म केवल वयस्कों के लिए है, बच्चो के लिए नहीं। उस ज़माने में, ये बहुत बड़ी बात थी। केबी लाल द्वारा निर्देशित इस फिल्म में, मनोरमा और गोपी ने भी मुख्य किरदार निभाया था। फिल्म को संगीत गुलाम मोहम्मद ने दिया था।

    मगर क्या आपको पता है कि फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिलने का मुख्य कारण क्या था? दैनिक भास्कर की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक, फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट किसी वयस्क दृश्य के कारण नहीं, बल्कि फिल्म के शीर्षक के कारण मिला था। सेंसर बोर्ड ने ये कहकर अप्पति जताई थी कि ‘हसंते हुए आंसू कैसे हो सकते हैं’।

    ऐसा वर्ष 1949 में मूल भारतीय सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में संशोधन के बाद हुआ जहाँ ‘ए’ और ‘यू’ लेबल पेश किए गए।

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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