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कर्मचारी भविष्य निधि संगठन

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार देश में करीब 30 लाख नई नौकरीयों का सृजन पिछले 6 महीनों में हुआ है।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के अनुसार पिछले 6 महीनो में 30 लाख नए भविष्य निधि खाते खोले गए हैं।

इन आंकड़ों से सरकार को अपने बचाव में बोलने के लिए कुछ बल मिलेगा। साथ ही देश के युवाओं को भी उम्मीद की किरण दिखेगी।

आंकड़ों में पेंच

30 लाख नई नौकरियों का दावा थोड़ा सा अस्पष्ट है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के द्वारा दिए गए आंकड़े सही तस्वीर नहीं दिखाते हैं।

इसी वर्ष संगठित क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों को लाने के लिए प्रधानमन्त्री मोदी ने घोषणा की थी कि भविष्य निधी खाते में नियोक्ता की तरफ से जमा किये जाने वाली रकम में सरकार भी कुछ योगदान देगी।

सरकार 12 फीसदी रकम तीन साल तक कर्मचारी के निधी खाते में देगी।

इस फैसले के बाद से कम्पनियां ठेके पर रखे गए कर्मचारियों को ईपीएफ से जोड़ रही हैं।

ऐसे में नई नौकरियां इतनी ज़्यादा उतपन्न नहीं हुई है हैं जितने का दावा किया जा रहा है। बल्कि पुराने कर्मचारियों को ईपीएफ में लाया जा रहा है।

सरकार की फजीहत

देश के करीब डेढ़ करोड़ युवा हर साल नौकरियों के काबिल हो जाते हैं। उस हिसाब से अगर हम 30 लाख की संख्या को सही मानें तब भी जरुरत के मुताबिक नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा है।

प्राइवेट सेक्टर नोटबन्दी व जीएसटी की मार झेलने के बाद अब सम्भल रहा है। देश की विलास दर भी अब सामान्य हुई है। ऐसे में नवरोजगारों का सृजन ना होना चिंता वाली बात है।

मोदी सरकार की सबसे ज्यादा फजीहत भी रोजगार के मुद्दे पर ही हुई है। चाहे सरकारी नौकरियों में कटौती, स्टाफ सेलेक्टशन कमीशन के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन या फिर प्रधानमन्त्री का पकौड़े वाला बयान हो।

भाजपा सरकार थाली में सजा कर 2019 लोकसभा चुनाव के लिए मुद्दे विपक्ष को दे रही है। साथ ही युवा-वर्ग जो कि ब्रांड मोदी का विकास के मुद्दे पर ना सिर्फ सबसे बड़ा समर्थक रहा है बल्कि सोशल मीडिया पर कीबोर्ड कार्यकर्ता की भूमिका में भी दिखते हैं, उन्हें भाजपा सरकार नाराज कर रही है।

वजह

सरकारी नौकरियों में कटौती को लेकर सरकार की दलील को अगर स्वीकार भी कर लिया जाये तो प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की कमी को कैसे छुपाया जायेगा!

मध्य-प्रदेश, यूपी, झारखण्ड, गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्यों में इन्वेस्टर्स समिट होते ही रहते हैं।

सरकार भारी मात्रा में विदेशी निवेश के आने का दावा भी करती है, फिर ऐसी क्या वजह है कि प्राइवेट नौकरियों का निर्माण नहीं हो पा रहा है?

नौकरियों व अर्थव्यस्था को रफ़्तार देने के लिए सरकार को भारतमाला जैसी योजनाएं लाने की जरूरत पड़ रही है।

भाजपा सरकार के खिलाफ सस्वर विरोध अभी नौकरियों के मुद्दे पर ही नजर आता है। अगर इस अभिशाप को भाजपा मिटा लेती है तो 2019 का रण भाजपा के लिए अधिक मुश्किल नहीं होगा।

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