वर्ष 1998 था, जब साढ़े पांच फीट लंबा क्रिकेटर किसी भी चीज और के साथ टकरा कर सभी चीज़ों पर हावी हो जाता था। यह वह वर्ष था जब सचिन तेंदुलकर ने भारत को यह बताने के लिए एक मिशन बनाया, कि वे किसी के भी खिलाफ जीत सकते हैं और सभी बाधाओं को प्राप्त कर सकते हैं।
आज से ठीक 21 साल पहले 22 अप्रैल को, तेंदुलकर यकीनन भारत के शारजाह में कोका-कोला कप के फाइनल में प्रवेश करने में अपनी सबसे बड़ी एकदिवसीय पारी के साथ आए।
यह त्रिकोणीय राष्ट्र टूर्नामेंट का छठा मैच था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया का दबदबा था और भारत फाइनल में पहुंचने के लिए न्यूजीलैंड के साथ लड़ रहा था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी मैच निर्णायक था। जबकि भारत निश्चित रूप से फाइनल में प्रवेश कर सकता था अगर वे ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराते हैं, तो उनके पास शिखर संघर्ष के लिए में जगह बनाने के लिए एक अच्छा मौका था यदि वे किवी खिलाड़ियों की तुलना में अपने रन-रेट को बेहतर रख सकते थे।
त्रिकोणीय राष्ट्र टूर्नामेंट के फाइनल में जगह बनाने के लिए भारत को अच्छे रन रेट के साथ ऑस्ट्रेलिया से जीतना था। मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलिया ने 50 ओवर में 7 विकेट के नुकसान पर 284 रन बनाए। जिसमें माइकल बेवन की 101 रन की नाबाद पारी शामिल थी।
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पूरे भारत को उस समय फाइनल में जगह बनाने के लिए केवल एक ही व्यक्ति पर उम्मीद थी और वह सचिन तेंदुलकर थे। भारत को फाइनल में प्रवेश करने के लिए कम से कम 254 रन बनाने थे। जिसके बाद भारत के पास अब दो लक्ष्य आ गए थे एक तो फाइनल में जगह बनानी थी और एक ऑस्ट्रेलियाई टीम को मात देनी थी।
हर बार की तरह इस मैच में भी एक छोड़ से विकेट गिर रहे थे और दूसरे छोड़ से तेंदुलकर ने भारत को फाइनल में जगह बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी थी। मास्टर बल्लेबाज बल्ले के साथ अच्छे संपर्क में दिख रहे थे और उन्होने शेन वॉर्न और उनके साथी गेंदबाजो की गेंद को मैदान के चारो और मारा। शारजाह लंबे समय तक तेंदुलकर के लिए एक खुशहाल शिकार का मैदान रहा था और वह ऑस्ट्रेलियाई टीम को जीत देने के का कोई मूड नहीं थे।
31 ओवर तक भारतीय टीम का स्कोर 4 विकेट के नुकसान में 143 रन था, और उसके बाद मैच में एक भारी तूफान के कारण मैच रोकना पड़ा। और उसके बाद भारत और सचिन के लिए यह लक्ष्य हासिल करना और मुश्किल हो गया था। उसके बाद टीम को फाइनल में पहुंचने के लिए 46 ओवर में 237 रन बनाने थे।
कमेंटेटर कह रहे थे कि ब्रेक तेंदुलकर की गति को कैसे बाधित किया जा सकता है, लेकिन भारतीय़ स्टार बल्लेबाज मैदान पर दोबारा बल्लेबाजी करने आए और ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजो को अधिक परेशान करने लगे। उन्हे जल्द ही अपना शतक पूरा कर लिया था और 43वें ओवर में भारत को फाइनल में प्रवेश करवा दिया।
तेंदुलकर हालांकि केवल फाइनल में भारत का मार्गदर्शन करने से खुश नहीं थे और मैच जीतने के लिए अपनी खोज शुरू कर दी। वह डेमियन फ्लेमिंग कि गेंद पर 131 गेंदों पर 143 रन बनाकर आउट हो गए , और यह फिर वनडे में उनका सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर था।
तेंदुलकर ने अपनी पारी में 9 चौके और 5 गगनचुंबी छक्के लगाए थे। वह सामान्य जगह पर दो दिन बाद दोबारा बल्लेबाजी करने उतरे थे और उन्होने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फाइनल में भी शतक लगाया था और भारतीय टीम को जीत दर्ज करवाई थी। उस ही दिन सचिन तेंदलुकर का 25वां जन्मदिन भी था।
सचिन तेंदुलकर उस सीरीज में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी भी बने थे-