श्रीलंका में राजनीतिक संकट का दौर का अंत हो चुका है और प्रधानमन्त्री रानिल विक्रमसिंघे को अपनी गद्दी वापिस मिल चुकी है। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने चुनाव आयोजकों की एक बैठक आयोजित की थी। राष्ट्रपति मैत्रुपाला सिरिसेना श्रीलंका में राजनीतिक संकट के रचियता रहे थे। श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के आयोजकों को सोमवार को ही राष्ट्रपति आवास में विशेष मीटिंग के बाबत सूचना दे दी गयी थी, जिसमे पार्टी के भविष्य की नीतियों पर चर्चा होनी थी।
पार्टी के जनरल सेक्रेटरी रोहना लक्ष्मण ने बताया कि हमने पार्टी के भविष्य में सुधार के बाबत चर्चा की, जो जनवरी माह से शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने आयोजकों से कहा कि सुधार कार्यक्रम के लिए उन्हें समर्पित रहने की जरुरत है। राष्ट्रपति आगामी वर्ष 8 जनवरी के बाद चुनावों का ऐलान कर सकते हैं।
ख़बरों के मुताबिक राष्ट्रपति की आयोजकों के साथ बैठक आगामी चुनावों के लिए निर्देश देने के लिए थी। उनके मुताबिक आगामी वर्ष राष्ट्रपति चुनावों का ऐलान किया जा सकता है। सम्भावना है कि आम चुनाव भी अगले वर्ष ही आयोजित किये जाए।
मैत्रिपाला सिरिसेना ने राजनीतिक संकट के रणनीतिकार रहे थे, उनके निर्बी ने राष्ट्र के संविधान को संकट में लाकर खड़ा कर दिया था और देश में अस्थिरता का माहौल बन गया था। मैत्रिपाला सिरिसेना ने प्रधानमन्त्री रानिल विक्रमसिंघे को उनके पद से बेदखल कर, पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सत्ता सौंप दी थी और संसद को भी भंग कर दिया था।
मैत्रिपाला सिरिसेना ने विक्रमसिंघे के दल यूनाइटेड नेशनल पार्टी के साथ मिलकर साल 2015 के राष्ट्रपति चुनावों में शिकस्त दी थी, इससे राजपक्षे का 10 साल का कार्यकाल समाप्त हो गया था। तीन सालों तक विरोधी विपक्षी होने के बाद, राजपक्षे और सिरिसेना ने सांठ गाँठ कर, विक्रमसिंघे को गेम से आउट कर दिया था।
महिंदा राजपक्षे ने अपनी पार्टी का गठन किया और स्थानीय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया था। महिंदा राजपक्षे संसदीय चुनावों पर अपनी पकड़ चाहते हैं, चाहे वह अगस्त 2020 से पूर्व ही उन्हें मिल जाए। वह संविधान के तहत दोबारा राष्ट्रपति नहीं बन सकते हैं। ‘मैत्रिपाला सिरिसेना ने संसद को भंग कर, 5 जनवरी को चुनाव के आयोजन का ऐलान किया था। इस शीर्ष अदालत ने गैर कानूनी करार दिया था।