Fri. Nov 8th, 2024
    अफगान युद्ध

    अफगानिस्तान की सरजमीं पर जंग ने नागरिकों का जीवन दुश्वार कर दिया है। साल 2018 में इस जंग के कारण 3800 नागरिकों ने अपनी जिंदगी गंवाई है जो अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। यूएन की रिपोर्ट जे मुताबिक दो दशकों से जारी इस युद्ध में साल 2017 के मुकाबले इस वर्ष 11 फीसद वृद्धि हुई है।

    विषय-सूचि

    नागरिकों को निशाना बनाते हैं फियादीन हमलावर

    साल 2018 में 3804 नागरिकों की जान गयी है, वही 7189 लोग जख्मी हुए हैं। आतंक से जूझ रहे देश में कई आत्मघाती हमले व बम विस्फोट हुए थे। अमेरिका और तालिबान आगामी शान्ति वार्ता के लिए बातचीत की योजना तैयार कर रहे हैं। जानकरों के मुताबिक अमेरिका के सैनिकों की वापसी से देश में गृह युद्ध की स्थिति पनप सकती है।

    संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक बीते एक दशक में 32000 नागरिकों की मौत हुई है और 60000 लोग घायल हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बीते वर्ष नागरिकों को निशाना बनाकर अधिकतर हमलों को अंजाम दिय्या गया था। तालिबान और आईएसआईएस से जुड़े आतंकियों ने अधिकतर आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया था, जिससे अधिकतर नागरिक हताहत हुए थे।

    जंग का अंत होना ही चाहिए

    अफगानिस्तान में यूएन अभियान के प्रमुख ने कहा कि “नागरिकों की हत्या को रोकने का सर्वश्रेष्ठ युक्ति इस जंग का खात्मा है। इस वक्त मानव दुर्गति और त्रासदी का अंत होना ही चाहिए।” साल 2018 में 65 आत्मघाती हमले हुए थे, जो अधिकतर काबुल में हुए थे। आतंकी हमलों में समस्त देश में 2200 नागरिकों की मौत हुई थी।

    अमेरिकी और अफगान सेनाओं द्वारा किये गए हवाई हमलों में भी 500 नागरिकों की मौत हुई है। अमेरिका ने आतंकी समूह तालिबान और आईएसआईएस पर दबाव बनाने के लिए हवाई हमलों में वृद्धि की थी। सोवियत संघ के विघटन के दौर से ही अफगानिस्तान इस विवाद से जूझ रहा है।

    इस हिंसा में वृद्धि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद पर विराजमान होने के बाद बढ़ी है। उन्होंने अफगानिस्तान में अमेरिकी भूमिका का अंत करने का दबाव बनाया था। अफगानी सरजमीं पर अमेरिका के 14000 सैनिक तैनात है।

    17 वर्षों की जंग का अंत

    हाल ही में तालिबान ने दावा किया कि अमेरिका अगले 18 महीनों में अफगानी सरजमीं से सभी विदेशी सैनिकों को वापस ले जाने के प्रस्ताव पर तैयार हो गया है। शनिवार को दोनों पक्षों के मध्य हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया है। अफगानिस्तान में बीते 17 सालों से संघर्ष बना हुआ है, इतने सालों से ही नाटो के सैनिक वहां मौजूद हैं।

    साल 1996-2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार रही थी। केवल सऊदी अरब, यूएई और पाकिस्तान ने तालिबान की सरकार को मान्यता दी थी। नवम्बर में नाटो के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अशरफ गनी की सरकार का प्रभाव या नियंत्रण 65 फीसदी जनता पर है लेकिन अफगानिस्तान के 407 जिले ही अफगान सरकार के पास है। तालिबान के दावे के मुताबिक वह देश के 70 फीसदी भाग पर नियंत्रण करता है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *