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    2018 की फिल्मों के खास किरदार

    2018 कुछ बड़ी लागत वाली फ़िल्मों के साथ शुरू हुआ। आमिर खान की फ़िल्म ‘ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान’ बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुह गिर पड़ी। सलमान खान की फ़िल्म ‘रेस 3’, बड़े स्टार्स के होने के बावजूद फ़िल्म ‘फन्ने खान’ दर्शकों को पसंद नहीं आई।

    हालांकि रणबीर कपूर की फ़िल्म ‘संजू’ ने काफी कमाई कर ली थी। पर यह तो साबित हो गया था कि 2018 में अच्छी कहानियों वाली फ़िल्में ही चल पाई।

    2018 में छोटे लागत की फ़िल्मों ने इतिहास कायम कर दिया है। छोटी लागत में बनी पर अच्छी कहानियों वाली फ़िल्में दर्शकों द्वारा खूब पसंद की गई हैं। आइये आपको इस साल की कुछ हिट फ़िल्मों की लागत बताते हैं।

    हिचकी (12 करोड़), बधाई हो (29 करोड़), राज़ी (30 करोड़), स्त्री (23-24 करोड़) पैड मैन( 20 करोड़), रेड (30 करोड़), परमाणु (44 करोड़), सुई धागा(35 करोड़), अन्धाधुन (32 करोड़) यह सभी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही हैं।

    फ़िल्म की कमाई को अगर अनदेखा करें तो इस फ़िल्मों की सबसे ख़ास बात थी इनके किरदार। इन फ़िल्मों में भले यह मुख्य भूमिका में नहीं थे पर दर्शकों का सारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। यदि हम फ़िल्म ‘बधाई हो’ को देखें तो आयुष्मान खुराना फ़िल्म में अपने दृष्टीकोण से फ़िल्म की कहानी बता रहे थे पर जो किरदार दर्शकों को याद रह गए वह थे गजराज राव और नीना गुप्ता।

    तो आइये 2018 की फ़िल्मों के कुछ ऐसे ही किरदारों की बात करते हैं जिन्होंने फ़िल्म के मुख्य किरदार को भी मात दे दी।

    स्त्री में पंकज त्रिपाठी और अपारशक्ति खुराना –

    स्त्री में pankaj त्रिपाठी
    स्रोत: इन्स्टाग्राम

    2017 में पंकज त्रिपाठी ने अपने छोटे से छोटे किरदारों को भी अपने अभिनय के दम पर बड़ा बना दिया था और इस साल भी ‘स्त्री’ में उन्होंने यह दिखा दिया है कि किरदार की लम्बाई से उसकी गहराई नहीं मापी जा सकती है। फ़िल्म में पंकज द्वारा बोले गए कुछ मज़ेदार डायलोग उनके अपने थे।

    पूरी फ़िल्म में पंकज त्रिपाठी का किरदार सबसे मज़ेदार था। फ़िल्म में राजकुमार राव के दो दोस्त थे जिसमें से एक थे आयुष्मान खुराना के छोटे भाई अपारशक्ति खुराना। इन्होंने कई फ़िल्मों में छोटे किरदार किये हैं पर स्त्री में इनका किरदार बाकी फिल्मों से बड़ा ही है।

    अपारशक्ति ने भी फ़िल्म को अपने अभिनय के दम पर एक नया फ्लेवर दिया है।

    बधाई हो में गजराज राव, नीना गुप्ता और सुरेखा सिकरी –

    बधाई हो में नीना गुप्ता
    स्रोत: इन्स्टाग्राम

    फ़िल्म के ट्रेलर लांच के साथ ही ‘बधाई हो’ को दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली थी। फ़िल्म का विषयवस्तु दर्शकों को बांधने के लिए काफी था पर गजराज राव, नीना गुप्ता और सुरेख सीकरी ने अपने अभिनय के दम पर फ़िल्म में चार चाँद लगा दिए।

    इन तीनो ने अपने किरदारों को इतनी बखूबी निभाया है कि इनके बिना अब हम इस फ़िल्म की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

    राज़ी में जयदीप अह्लावत –

    जयदीप अह्लावत इन राज़ी
    स्रोत: इन्स्टाग्राम

    फ़िल्म राज़ी में आलिया के अभिनय की बहुत तारीफ़ हुई और वह बड़ी स्टार भी हैं। हर दृश्य में लगभग आलिया ही थी पर जब भी जयदीप का कोई भी दृश्य आता तो एक बार दर्शकों की आँखे जयदीप पर जरूर ठहर जाती हैं।

    फ़िल्म में जयदीप ने आलिया के ट्रेनर का किरदार निभाया है और अपने अभिनय से वह अपने किरदार के साथ न्याय करते नज़र आए हैं। जयदीप इससे पहले ‘कमांडो’ में भी नज़र आए थे पर फ़िल्म ‘राज़ी’ से उन्हें काफी पहचान मिली है।

    परी में परम्ब्रता चट्टोपाध्याय  –

    परम्ब्रता चट्टोपाध्याय
    स्रोत: इन्स्टाग्राम

    परम्ब्रता बंगाली सिनेमा के जाने माने अभिनेता हैं और हिंदी भाषी दर्शकों से इनका परिचय सबसे पहले विद्या बालन की फ़िल्म ‘कहानी’ से हुआ था। अपने सीधे-साधे लुक से परम्ब्रता सहज ही दर्शकों का दिल जीत लेते हैं।

    ‘कहानी’ 2012 में आई थी और उसके बाद हमें परम्ब्रता की कोई हिंदी फ़िल्म देखने के लिए नहीं मिली थी पर इस साल वह ‘परी’ के साथ वापस लौटे हैं। फ़िल्म में अनुष्का शर्मा मुख्य भूमिका में हैं पर परम्ब्रता के किरदार से हमें बरबस ही सहानुभूति हो जाती है।

    अक्टूबर में गीतांजलि राव-

    अक्टूबर
    स्रोत: इन्स्टाग्राम

    ‘अक्टूबर’ को दर्शकों और फ़िल्म समीक्षकों ने बहुत सराहा है। यह फ़िल्म मुख्य धारा से जरा हटके है। इस फ़िल्म में वरुण धवन का भी किरदार उनकी बाकी फ़िल्मों से थोड़ा अलग है। फ़िल्म में न ड्रामा है नाही ज्यादा भावनाएं पर फ़िल्म के किरदारों से हम एक सहज लगाव महसूस करने लगते हैं।

    फ़िल्म वरुण धवन और बनिता संधू के इर्द गिर्द ही घुमती है पर फ़िल्म का एक और किरदार जो बिना कुछ बोले भी बहुत कुछ बोल जाता है वह है शियूली की माँ का किरदार जिसे निभाया है थिएटर कलाकर गीतांजलि राव ने।

    एक निराश हो गई माँ जिसे लगातार आशा और निराशाओं से झुझते हुए अपना घर भी संभालना पड़ता है। शियूली के ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है पर एक माँ होने के नाते वह उम्मीद छोड़ भी नहीं सकती।

    और बच्चों के लिए फीस भी कम पड़ रही है क्योंकि सरे पैसे उसके इलाज़ में ख़त्म हो रहे हैं। इन सभी विचारों और वेदनाओं को गीतांजलि ने बखूबी निभाया है।

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    By साक्षी सिंह

    Writer, Theatre Artist and Bellydancer

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