अब भारतीय रेलवे एक ऐसा कदम उठाने जा रहा है, जिसके द्वारा जहाँ एक ओर रेलवे को काफी फायदा होगा, वहीं दूसरी ओर यात्रियों का भी सफर भी सुगम हो जाएगा।
रेलवे के दक्षिण रेलवे ज़ोन ने हाल ही में रेलवे कोचों में लिंक हाफ़मेन बुश (एलएचबी) तकनीकी का प्रयोग किया है, जिसके तहत सामने आने वाले परिणामों को लेकर रेलवे बेहद खुश है। इस तकनीक की सहायता से एक ओर जहां रेल कोचों को हल्का बनाया गया है, वहीं दूसरी ओर इन कोचों में सफर करने वाले यात्रियों को भी सामान्य कोचों की तुलना में बहुत कम झटके लगते हैं।
इसके तहत रेलवे प्रति ट्रेन एक महीने में करीब 1 करोड़ रुपये के ईंधन की बचत कर पाएगा।
एलएचबी कोच रेलवे की इंटीग्रल कोच फैक्टरी(आईसीएफ़) में बने कोचों के मुक़ाबले कहीं ज्यादा हल्के, सुविधाजनक व सुरक्षित हैं।
एलएचबी कोचों को सेमी हाइस्पीड ट्रेनों में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। एलबीएच कोचों में अतिरिक्त बिजली के लिए जेनेरेटर की व्यवस्था नहीं है, बल्कि ट्रेन के चलते ही ये कोच को एचटी लाइन से ही बिजली पहुंचा देते हैं।
15 घंटे की औसत ट्रेन यात्रा में एसी द्वारा करीब 1,800 लीटर डीजल इस्तेमाल कर लिया जाता है। सिर्फ एक कोच के एसी को चलाने के लिए करीब 30 से 40 लीटर डीजल प्रति घंटे की दर से चाहिए होता है।
यही वजह है कि एलएचबी कोच पर्यावरण की दृष्टि से भी ये काफी बेहतर विकल्प है।
हालाँकि अभी भी इन कोचों को हर जगह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि देश में अभी भी कई ऐसे रेलवे स्टेशन हैं, जिनका बिजलीकरण होना अभी बाकी है। एक बार सभी रूट का विद्युतीकरण हो जाने पर रेलवे इन कोचों को पूरी तरह से लागू करने पर विचार करेगा।