सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हैदराबाद मुठभेड़ की सच्चाई जानने के लिए तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित करने का आदेश दिया। आयोग का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी. एस. सिरपुरकर करेंगे, जिसमें बम्बई हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रेखा बलदोता और पूर्व सीबीआई निदेशक डी. आर. कार्तिकेयन शामिल होंगे। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “आयोग छह महीने में जांच पूरी कर लेगा और आयोग के अध्यक्ष हैदराबाद में सुनवाई की पहली तारीख तय करेंगे।”
शीर्ष अदालत ने हैदराबाद एनकाउंटर में तेलंगाना हाई कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा शुरू की गई कार्यवाही पर भी रोक लगा दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी अन्य अदालत को मामले से संबंधित किसी भी याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए।
तेलंगाना सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से शीर्ष अदालत ने मुठभेड़ से संबंधित कई अहम सवाल किए। अदालत ने इस घटना से संबंधित एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराने पर जोर दिया।
प्रधान न्यायाधीश ने रोहतगी से उन परिस्थितियों के बारे में पूछा, जिसमें पुलिस ने आरोपियों पर गोलियां चलाई थीं। अदालत ने पूछा, “पुलिस अधिकारी आरोपियों के साथ अपराध स्थल पर गोलियों से भरी हुई पिस्तौल लेकर क्यों गए थे? आरोपियों ने पुलिसकर्मियों पर पत्थरों से हमला क्यों किया, जब उन्होंने हथियार छीन लिए थे? क्या वे हिस्ट्रीशीटर थे?”
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि पुलिस हिरासत से भागने का प्रयास करने वाले आरोपियों ने पुलिसकर्मियों पर पत्थरों से हमला किया और पुलिसकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई में गोलीबारी की।
शीर्ष अदालत ने राज्य के अधिकारियों से इस घटना में घायल पुलिसकर्मियों की मेडिकल रिपोर्ट दिखाने को भी कहा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “वे पत्थर का उपयोग क्यों करेंगे, अगर उनके पास पिस्तौल थी? कारतूस कहां है? किसने इसे बरामद किया? उन सभी चीजों को कहां रखा गया है?”
बोबडे ने रोहतगी से पूछा, “क्या आप पुलिसकर्मियों पर मुकदमा चला रहे हैं?” उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं, क्योंकि उस स्थिति में उन पर मुकदमा चलाने का कोई कारण नहीं है।”
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “लोगों को सच्चाई जाननी चाहिए। हम उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दे सकते हैं। जांच-पड़ताल का विरोध न करें।”