जैसे ही हिमा दास की कार डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ के परिसर में दाखिल हुई, असमिया एथलीट का बेसब्री से इंतज़ार करने वाले युवाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। यहा कॉलेज की दिवार पर कपिल देव, युवराज सिंह औऱ नीरज चोपड़ा जैसे महान खिलाड़ियो के पोस्टर कॉलेज सभागार में चिपका रखे थे। औऱ यह पर छात्रो द्वारा लगातार हिमा दास से ऑटोग्राफ के लिए मांग की जा रही थी, जिसमें से कुछ छात्र अपने नए सत्र के लिए नए किताबो पर उनका ऑटोग्राफ लेने के लिए बेकरार थे।
पिछले महीने दास 38 दिनों के अंतराल के बाद अपने प्रशिक्षण पर लौटी थे और मार्च के पहले सप्ताह में संगरूर में इंडियन ग्रां प्री में दो साल में अपनी सबसे कम समय पोस्ट करने के बाद फोकस की कमी के बड़बड़ाहट थी। जबकि दास ने अपनी बारहवीं की परीक्षा में बैठने के लिए ब्रेक लिया था, मंगलवार को कॉलेज की यात्रा ने भी उन्हें एक बयान दिया।
दास ने इंडियन एक्सप्रेस को कहा, ” मुझको एथलेटिक्स ने पहचान दी। मैं जो भी हूं एथलेटिक्स के ही कारण हूं। पर उसके साथ में अपनी पढ़ाई भी पूरी करना चाहती थी। थोड़ी पढ़ाई और कर के मुझे थोड़ा और ज्ञान मिलेगा और इससे मुझे भविष्य में मदद मिलेगी। जब मैंने इंडियन ग्रेंड प्री संगरूर में भाग लिया यह केवल मेरे खेल में डलने का मानदंड था और मेरा शरीर तैयार नही था। मेरे कोचों ने उन छह हफ्तों के लिए मेरा कार्यक्रम बनाया था और मैंने वर्क आउट को छोड़कर नॉन एग्जाम के दिनों में प्रशिक्षण लिया। इतना अच्छा नही भाग पाई लेकिन थोड़े दिनो में पता लगेगा कि कितना अच्छा भाग सकती हूं। मैं काम करती हूं और मेरे काम से सब को दोबारा फिर से पता चलेगा।”
पिछले दस महीनों में असम के गाँव कहन्दुमारी से ताल्लुक रखने वाले नौजवान धाविका ने वर्ल्ड U-20 चैंपियन बनने वाली दूसरी भारतीय बनी, जब उन्होंने टेम्पेरे विश्व U-20 चैंपियनशिप में महिलाओं के 400 मीटर फ़ाइनल में 51.56 सेकंड का समय जीता।
उसके बाद हिमा दास को एशियन चैंपियनशिप की भारतीय टीम में चुना गया, और असम की यह एथलीट जानती थी की यह उनके लिए एक मुश्किल कार्य होने वाला है, ” सीनियर लेवल पर प्रतिस्पर्धा करके मुझे कई चीजो के बारे में पता लगा है। सीनियर वर्ग में प्रतिद्वंद्वी बहुत अनुभवी है और एक जूनियर वर्ग की होने के नात में जानती हूं। मुझे पता था कि समय ऊपर भी जाएगा और नीचे भी जाएगा। यह सब स्तर के अभ्यास के ऊपर निर्भर होता है। सचिन तेंदुलकर जैसे महान बल्लेबाज भी कभी 0 पर आउट हो जाते है और फिर शतक लगाते है। फेडरेशन कप के दौरान मेरे पीठ में कुछ समस्या थी लेकिन अब मैं ठीक हूं और एशियन चैंपियनशिप दोहा में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आगे देख रही हूं।”
हिमा दास के लिए जिंदगी में बदलाव आय़ा है लेकिन वह अपने दोनो जीवन को अलग नजरिये से देखती है। उन्होने कहा, ” मुझ में कोई बदलाव नही आया है। देश के लोग मुझे प्यार करते है और मुझे एशियन गेम्स में पदक जीतने में मदद करते है। सबसे बड़ा बदलाव यह है लोग मुझे प्रेरणा के रूप में देखते है। मेरी जिम्मेदार और उम्मीदे बढ़ गई है। वह जिंदगी अलग है और खेल की जिंदगी अलग है। जब मैं विश्व चैंपियनशिप मे जीती थी तो मेरे परिवार वालो को पता भी नही था। जब मैंने मेडल जीता, उसके बाद मैंने अपने परिवार वालो के साथ बात की। वह खुश थे लेकिन वह उसके बाद फिर अपने महत्वपूर्ण काम पर लग है।”
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