पाकिस्तान में अल्प संख्यकों के खिलाफ बढ़ रहे हिंसा के चलते, कई हिन्दू परिवार पाकिस्तान से पलायन करने पर मजबूर हैं। शरणार्थी में ज्यादातर पाकिस्तानी हिन्दू सिंध प्रान्त के रहने वाले है, जो कि भारतीय राज्य राजस्थान के सीमा के करीब है।
राज्यस्थान सरकार के अनुसार प्रदेश में करीब 12,000 हिन्दू शरणार्थी रह रहे है। वे अपनी पाकिस्तानी नागरिकता को त्याग भारतीय बनाना चाहते है। भारतीय नागरिकता देने का अधिकार केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है और यह काफी जटिल प्रक्रिया है।
भारत के नागरिक ने होने की वजह से, इन शरणार्थीयों को अपनी प्राथमिक जरूरते पूरी करने में भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। शरणार्थीयों में कई पढ़े लिखे युवक भी हैं, लेकिन पाकिस्तानी विश्वविद्यालयों की डिग्री को भारत में मान्यता न होने के कारन इन युवाओं को मुश्किले हो रही है।
2016 में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सर्कुलर द्वारा नागरिकता देने का अधिकार राज्य शासन एवं जिला कलेक्टेरों को दिए थे। इस अधिकार का प्रयोग करते हुए राजस्थान सरकार ने 5100 हिन्दू शरणार्थीयों को भारतीय नागरिकता प्रदान की थी।
नागरिकता के लिए निवेदन करने से पूर्व शरणार्थियों को अपने पासपोर्ट नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चयोग में जमा कराने होंगे। इसीसे उनकी पाकिस्तानी नागरिकता का अंत हो जाएगा।
नागरिकता देते समय शरणार्थियों के सारे कागजात सही होने की पुष्टि की जाती है। पाकिस्तान से पलायन कर भारत आने वाले ज्यादातर शरणार्थी सिंध प्रान्त के हैं, और उनके डाक्यूमेंट्स सिन्धी और उर्दू में लिखे हुए हैं। सिन्धी और उर्दू भाषा में लिखित तथ्यों की पुष्टि करना सरकार को मुश्किल हो रहा हैं, और इसी कारन नागरिकता प्रदान करना जटिल हो रहा हैं।
भारतीय नागरिकता के नियम
- भारतीय नागरिकता, भारत में जन्म लेने वालों को नैसर्गिक तौर पर प्रदान की जाती है। या फिर नागरिकता हासिल करने के लिए पति या पत्नी का भारतीय नागरिक होना जरुरी हैं, अगर ऐसा है तो नागरिकता के लिए निवेदन कर सकते हैं।
- भारतीय मूल के विदेशों में रहने वाले लोग भी भारतीय नागरिकता के लिए निवेदन कर सकते हैं, मगर इसलिए उन्हें अपनी नागरिकता का त्याग करना पड़ता हैं।
- विदेशी नागरिक भारत में 10 वर्षों से निवास कर रहे हों और अपनी नागरिकता त्याग चुके हो तभी वे भारतीय नागरिकता के लिए निवेदन कर सकते हैं।
हालांकि राज्य सरकारों को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार हैं। फिर भी यह विषय राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टी से महत्त्वपूर्ण होने के कारन इस पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन हैं।