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    कोलकाता, 2 जून (आईएएनएस)| पश्चिम बंगाल के शिक्षा जगत से जुड़े लोगों और लेखकों ने रविवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे का विरोध किया जिसमें कक्षा आठ तक बच्चों को हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है। इन लोगों ने कहा कि किसी भी भाषा को थोपने के प्रयास का चौतरफा विरोध किया जाएगा।

    रविंद्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व विख्यात भाषाविद् पवित्र सरकार ने कहा कि के.कस्तूरीरंगन समिति का हिंदी को अनिवार्य बनाने का सुझाव प्राथमिक स्कूल के बच्चों पर और अधिक दबाव डालेगा।

    उन्होंने कहा कि कक्षा 6, 7 और 8 के बच्चों को तो हिंदी पढ़ाई जा सकती है लेकिन इसे कक्षा एक से ही अनिवार्य बनाना सही नहीं होगा।

    सरकार ने आईएएनएस से कहा, “मौजूदा शिक्षा प्रणाली ने पहले ही विद्यार्थियों पर काफी दबाव डाला हुआ है। हमें इसे और नहीं बढ़ाना चाहिए।”

    उन्होंने कहा कि किसी भी चीज को ‘ऊपर से थोपना’ गलत है और दक्षिण के राज्यों ने ऐसी किसी पहल का विरोध शुरू भी कर दिया है।

    सरकार ने कहा कि इसके बजाए गैर हिंदीभाषी राज्यों में रहने वाले हिंदीभाषी लोगों को उस राज्य की मुख्य क्षेत्रीय भाषा भी सीखनी चाहिए। मिसाल के लिए बंगाल में हिंदीभाषी लोगों को बांग्ला सीखना चाहिए। इससे अनेकता में एकता को बल मिलेगा और राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी।

    दिग्गज बांग्ला लेखक शीर्षेदु मुखोपाध्याय को केंद्र की इस बात से राहत मिली है कि कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।

    उन्होंने आईएएनएस से कहा, “यह केवल मसौदा है। मुझे लगता है कि अगर विरोध प्रदर्शन होगा तो वे इसे हम पर नहीं थोपेंगे। दक्षिण भारत पहले से ही विरोध कर रहा है। उम्मीद है कि बंगाल में भी विरोध प्रदर्शन होगा। कुछ भी थोपा नहीं जाना चाहिए। कौन किस भाषा को सीखना चाहता है, यह उसका अपना निर्णय होना चाहिए।”

    साहित्य अकादमी विजेता मुखोपाध्याय ने इस बात को मानने से इनकार किया कि नई शिक्षा नीति का यह मसौदा केंद्र की शिक्षा के भगवाकरण की किसी कोशिश का हिस्सा है।

    जादवपुर विश्वविद्यालय के कुलपति सुरंजन दास ने इस पर कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि अभी उन्होंने पूरा मसौदा नहीं देखा है।

    मशहूर कवि और अकादमीशियन सुबोध सरकार ने आईएएनएस से कहा, “अगर वे हिंदी को कक्षा आठ तक अनिवार्य बनाना चाहते हैं तो मैं पूछता हूं कि बांग्ला को क्यों नहीं? इसे बोलने वालों की संख्या 25 करोड़ है और यह अधिक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। भाषाओं की विश्व रैंकिंग में बांग्ला आम तौर से हिंदी से ऊपर रहती है।”

    सरकार ने कहा, “भारत जैसे देश में हिंदी को थोपा जाना स्वीकार्य नहीं है। मराठी, उर्दू, मलयालम और भी कितनी ही भाषाएं हैं। फिर सिर्फ हिंदी क्यों? इन भाषाओं को इनका उचित सम्मान मिलना ही चाहिए।”

    के. कस्तूरीरंगन समिति ने हाल में केंद्र सरकार को सौंपे अपने राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले को लागू करने का सुझाव दिया है।

    कस्तूरीरंगन समिति ने राज्यों को हिंदीभाषी और गैर हिंदीभाषी में बांटा है और सुझाव दिया है कि गैर हिंदीभाषी राज्यों में त्रिभाषा प्रणाली के तहत अंग्रेजी और राज्य की क्षेत्रीय भाषा के साथ हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए। समिति ने सुझाव दिया है कि हिंदीभाषी राज्यों में हिंदी और अंग्रेजी के साथ देश के अन्य हिस्सों की ‘आधुनिक भारतीय भाषाओं’ में से किसी एक को पढ़ाया जाए।

    लेकिन, समिति ने यह साफ नहीं किया है कि आधुनिक भारतीय भाषा से उसका क्या अभिप्राय है। तमिल को केंद्र सरकार ने क्लासिकल भाषा का दर्जा दिया हुआ है।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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