चंडीगढ़, 10 मई (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित हरियाणा में लोकसभा चुनाव के छठे चरण में सभी 10 सीटों पर 12 मई को मतदान होगा। यहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व उनके पूर्ववर्ती कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए करो या मरो की लड़ाई है।
भाजपा, कांग्रेस व ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) तीन मुख्य पार्टियां हैं, जिनके बीच चुनावी लड़ाई है।
इस बार राज्य, विधानसभा चुनाव से कुछ ही पहले रोमांचक मुकाबले का साक्षी बन रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला के पौत्र अर्जुन व उनसे अलग हुए दुष्यंत व दिग्विजय चौटाला अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत कर रहे हैं।
अर्जुन व दिग्विजय चौटाला क्रमश: कुरुक्षेत्र व सोनीपत सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। अर्जुन, इनेलो से और दिग्विजय जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से उम्मीदवार हैं। जेजेपी, इनेलो से अलग होकर बनी है।
हिसार वंशवाद के त्रिकोणीय संघर्ष का साक्षी बनने जा रहा है, जहां से जेजेपी का नेतृत्व कर रहे दुष्यंत चौटाला अपनी सीट बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वह कांग्रेस के भव्य विश्नोई व भाजपा के नौकरशाह से राजनेता बने बृजेंद्र सिंह के खिलाफ मुकाबले में हैं।
भव्य मुकाबले में सबसे कम क्रम उम्र के हैं। वह तीन बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत भजन लाल के पोते हैं। बृजेंद्र सिंह, स्टील मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं।
इन चुनावों में हुड्डा-पिता व पुत्र की प्रतिष्ठा दांव पर है, जो कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं।
राज्य में 2014 की हार के बाद से कांग्रेस की स्थिति लगातार गिरती जा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा सोनीपत से अपना भाग्य आजमा रहे हैं जबकि उनके बेटे दीपेंद्र, रोहतक से चौथी बार जीत की उम्मीद कर रहे हैं।
दीपेंद्र हुड्डा, दस उम्मीदवारों में से एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार रहे जो 2014 के लोकसभा चुनावों में जीतने में कामयाब रहे। उस समय भाजपा को 34.8 फीसदी वोट मिले थे और सात सीटों पर जीत मिली थी। इनेलो को दो सीटों पर जीत मिली थी।
खट्टर सरकार को मोदी फैक्टर से ‘असाधारण जीत’ का भरोसा है। इससे पहले खट्टर सरकार जनवरी में जींद में हुए विधानसभा उपचुनाव को जीत चुकी है। इस उप चुनाव में कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला, जेजेपी के दिग्विजय चौटाला के बाद तीसरे नंबर पर रहे थे।
यह पहली बार है कि भाजपा ने जींद सीट जीती है।
राजनीतिक जानकारों ने आईएएनएस से कहा कि भाजपा को इस बार दोहरी बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
पहला, भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के अंत में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। दूसरी बात यह है कि चुनाव में जाट आरक्षण उस राज्य में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जहां जातिगत समीकरण ने प्रत्येक चुनाव में एक निर्णायक भूमिका निभाई है।