रोहिंग्या मुसलमानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। लेकिन म्यांमार सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। म्यांमार से बड़ी संख्या में लोग बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो रहे है। जानकारी के मुताबिक अभी भी म्यांमार से बांग्लादेश की तरफ पलायन जारी है।
म्यांमार में अब भी रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार किया जा रहा है। म्यांमार के रखाइन प्रांत में बौद्ध धर्म का वर्चस्व है। इस लिए यहां पर हिंसा के बाद से रोहिंग्या मुसलमानों पर जमकर अत्याचार किए जा रहे है।
जिस वजह से अब तक करीब 6 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को अपना देश छोडऩे को मजबूर होना पड़ा है। इन लोगों ने बांग्लादेश व अन्य जगहों पर शरण ले रखी है।
ताजा जानकारी के मुताबिक बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रह रहे ज्यादातर बच्चे कुपोषण के शिकार है। रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में सुरक्षित तो है लेकिन वे कई तरह की कठिन परिस्थितियों से अब भी गुजर रहे है। हजारों की संख्या में बच्चे कुपोषण से पीड़ित है। इन बच्चों को मौत का खतरा भी है।
कुपोषण के इलाज की नहीं है व्यवस्था
लेकिन इनकी चिकित्सा के पूरे इंतजाम नहीं हो पा रहे है। जब से म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमान अपने बच्चों व परिवार के साथ पलायन को मजबूर हुए है तब से ही इनके सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है। इन लोगों के सामने रहने व खाने का संकट खड़ा हो गया है।
कई बच्चे बुखार,दस्त व भूख से पीड़ित है। इनको कई दिनों से खाना नहीं मिल रहा है। हजारों की संख्या में बच्चे कुपोषण के शिकार हो गए है। इन बच्चों के माता-पिता चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे है। शरणार्थी शिविरों में इलाज कर रहे डॉक्टरों के मुताबिक आने वाले समय में इन बच्चों की स्थिति ज्यादा भयावह हो सकती है।
इन शिविरों में बच्चों को उच्च पोषण वाले भोजन वितरित किए जा रहे है ताकि रोहिंग्या के शिशुओं की मांसपेशिया मजबूत हो सके। लेकिन इनमें खाने के पैकेट के लिए भी लड़ाई चल रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक गंभीर कुपोषण वाले बच्चों का उपचार नहीं मिल पाने की वजह से मरने का खतरा है।
इन शिविरों में कई मौत भी हुई है। भोजन के लिए लोगों को 6-8 घंटे तक लाइन में लगना पड़ रहा है। कुछ महिलाएं बच्चों को गोद में लेकर राशन के सामान का बोझ नहीं उठा पा रही है। ज्यादातर शरणार्थी परिवार चावल और मसूर के भोजन पर जीवित है।
स्तनपान कराने वाली व गर्भवती महिलाओं को मिलने वाला आहार पौष्टिक नहीं है। व कई महिलाओं को तो पर्याप्त मात्रा में भोजन तक नहीं मिल रहा है। जिसका उनके बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है। यूनिसेफ की माने तो रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में करीब 25,000 बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित है।