विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 21 अप्रैल से चीन के दौरे पर जा रही हैं। स्वराज शंघाई सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए चीन जायेंगीं। यह बैठक 24 अप्रैल को निर्धारित है।
उससे पहले 22 अप्रैल को सुषमा स्वराज अपने समकक्ष वांग यी से द्विपक्षीय वार्ता करेंगी। ऐसे में भारत चीन सम्बन्ध मजबूत करने की कोशिश की जायेगी।
क्या है शंघाई सहयोग संगठन
शंघाई सहयोग संगठन देशों का एक समूह है जो कि राजनैतिक, सैनिक व आर्थिक मुद्दों पर आपसी सहयोग करता है।
इसके मुख्य देश हैं
- चीन
- कज़ाख़स्तान
- किर्गिस्तान
- रूस
- ताजीकिस्तान
- उज़्बेकिस्तान
- भारत
- पाकिस्तान
इसकी शुरुआत 2001 में शंघाई में हुई थी। भारत व पाकिस्तान इसके सबसे नए सदस्य हैं, इन्हें एक साथ 2017 में सदस्यता प्राप्त हुई थी। इस संगठन की मुख्य भाषाओं में से एक हिन्दी भी है।
चीन का दांव
सुषमा स्वराज के इस दौर पर चीन भारत को बेल्ट और रोड इनिशिएटिव में जुड़ने के लिए मनाने की कोशिश करेगा।
22 अप्रैल को वैंग यी सुषमा स्वराज के साथ द्विपक्षीय वार्ता में इस मुद्दे पर खास ध्यान देंगे।
इस चर्चा में व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने पर भी चर्चा होना सम्भव है। साथ ही डोकलाम विवाद के बाद से दोनों देशों के बीच जो तनातनी बनी थी, उसे कम करने की कोशिश की जायेगी।
चीन के विदेश मंत्रालय के तरफ से आये बयान के अनुसार यह दौरा भारत व चीन के बीच “राजनैतिक विश्वास” के निर्माण का कार्य करेगा। इससे भारत व चीन जैसी एशियाई महाशक्तियों के बीच संबन्ध बेहतर बनेंगे।
आकलन
ऐसी गोल-मोल बातों के पीछे चीन का निहित स्वार्थ है। ज़ी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना “वन बेल्ट, वन रोड” में भारत का एक बड़ा भाग तय है। दक्षिण एशिया में इसकी आर्थिक सफलता के लिए जरूरी है कि भारत इसका हिस्सा बने।
पर भारत लगातार इसका विरोध कर रहा है। वजह है पाकिस्तान के रास्ते बन रहा चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कॉरिडोर। यह कॉरिडोर पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है जिसपर भारत का अधिकार है। ऐसे में यह बेल्ट और रोड परियोजना भारत की स्वायत्तता का हनन है।
लम्बे समय से भारत इस परियोजना के खिलाफ आवाज उठा रहा है। और आशा है कि इस बार भी चीन भारत को इस परियोजना में लाने की कोशिश करेगा।
बेल्ट और रोड परियोजना को चीन अपने यहां निर्मित उत्पादों को अफ्रीका, मध्य-पूर्व, तथा दक्षिण व मध्य एशिया में निर्यात करने के लिए इस्तेमाल करेगा। सभी देशों के बीच सड़क व रेल यातायात का नेटवर्क तैयार करने की योजना है। हालांकि विशेषज्ञ इस परियोजना की लागत व इसके फायदे को लेकर संशय जता रहे हैं।
भारत के इस परियोजना में ना शामिल होने के दो मुख्य कारण बताये जा सकते हैं।
पहला है राष्ट्र की स्वायत्तता पर प्रश्न व सुरक्षा सम्बन्धी कारण।
दूसरी वजह है भारत का औद्योगिक निर्माण का केंद्र बनने की महत्वकांक्षा। चीन से निर्मित सस्ता सामान भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
एक वजह यह भी मानी जा सकती है कि भारत अपना खुद का यातायात नेटवर्क तैयार कर रहा है। ईरान में निर्मित चाबाहार पोर्ट उसकी एक कड़ी है जिसके माध्यम से भारत मध्य एशिया में अपने यहां निर्मित वस्तुओं को निर्यात करेगा।
बांग्लादेश-भारत इकोनॉमिक कॉरिडोर पर भी बात चल रही है, हालांकि अभी तक कुछ तय नहीं हो पाया है। साथ ही भारत सरकार म्यांमार से भी एक निर्यात पथ के लिए चर्चा कर रही है जो कि आसियान देशों से भारत को जोड़ेगा।
इन कोशिशों के मध्य चीन का वन बेल्ट- वन रोड भारत के लिए चुनौती भी है व अगली विश्व शक्ति बनने के लिए प्रतिस्पर्धा भी है।