Tue. Dec 3rd, 2024

    सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अब तक कितने लोगों को कोविड-19 टीके की एक या दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं। अदालत ने यह भी पूछा है कि गांवों और शहरों में कितनी फीसदी आबादी को टीका लग चुका है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने वैक्सीन खरीद का पूरा ब्योरा भी मांगा है। न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह कोविड-19 टीकाकरण नीति पर अपनी सोच दर्शाने वाले प्रासंगिक दस्तावेज और फाइल नोटिंग रिकॉर्ड पर रखे।

    शीर्ष अदालत ने कहा, हमने देखा है कि केंद्र सरकार के नौ मई के शपथपत्र में कहा गया है कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को नागरिकों का मुफ्त टीकाकरण करना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अदालत के सामने इसे स्वीकार या इससे इनकार करें। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 30 जून तय कर दी। अदालत ने केंद्र से दो सप्ताह के अंदर शपथपत्र दाखिल करने के लिए कहा है।

    इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार की पेड वैक्सीन नीति को प्रथमदृष्टया मनमाना और अतार्किक बताते हुए स्‍पष्‍ट करने का निर्देश दिया कि केंद्रीय बजट में वैक्‍सीन की खरीद के लिए रखे गए 35,000 करोड़ रुपये अब तक कैसे खर्च किए गए हैं। साथ ही पूछा कि इस फंड का इस्‍तेमाल 18-44 वर्ष के लोगों के लिए वैक्‍सीन खरीदने के लिए क्‍यों नहीं किया जा सकता।

    पीठ ने कहा, कोविड-19 के सभी टीकों (कोवैक्सीन, कोविशील्ड तथा स्पुतनिक वी) की खरीद पर आज तक के केंद्र सरकार के ब्योरे के संबंध में संपूर्ण आंकड़े। आंकड़ों में स्पष्ट होना चाहिए: (क) केंद्र सरकार द्वारा तीनों टीकों की खरीद के लिए दिए गए सभी ऑर्डर की तारीखें, (ख) हर तारीख पर कितनी मात्रा में टीकों का ऑर्डर दिया गया, उसका ब्योरा और (ग) आपूर्ति की प्रस्तावित तारीख। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार मौजूदा वैक्सीन नीति की समीक्षा करे और उसे भी कोर्ट को बताएं। इसके साथ ही 31 दिसंबर तक वैक्‍सीन की संभावित उपलब्‍धता का रोडमैप भी उसके समक्ष पेश करने को कहा है।

    अदालत ने कहा कि वैक्सीनेशन के लिए कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया है तो ऐसे में केंद्र देश में जो डिजिटल विभाजन का मुद्दा है उसका समाधान कैसे निकालेगी। झारखंड का एक निरक्षर श्रमिक राजस्थान में किसी तरह रजिस्ट्रेशन करवाएगा? बताइए कि इस डिजिटल विभाजन को आप किस तरह दूर करेंगे?’

    शीर्ष अदालत ने केंद्र की लिबरल वैक्सीनकरण नीति पर भी गंभीर सवाल उठाए। यह नीति राज्य/यूटी की सरकारों और निजी अस्पतालों को देश में सेंट्रल ड्रग्स लैबोरेटरी (सीडीएल) द्वारा मंजूर मासिक खुराक में से 50 प्रतिशत खुराक पूर्व-निर्धारित कीमत पर खरीदने की अनुमति देती है। कोर्ट ने कहा कि यदि केंद्र की मोनोपली खरीदार की स्थिति वैक्सीन मैन्युफैकचरर्स से बहुत कम दर पर वैक्सीन प्राप्त करने का एकमात्र कारण है, तो ऐसे में अदालत के लिए संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौजूदा उदारीकृत वैक्सीनकरण नीति की युक्तिसंगतता की जांच करना महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह विशेष रूप से वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों पर गंभीर बोझ डाल सकती है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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