अंधविश्वास एवं कुछ पुरानी रूढ़िवादी सभ्यताओं के कारण आज भी हमारे देश में असमानता हैं। भेद भाव से लेकर सांप्रदायिक घृणा तक हम आज भी इन सब चीज़ो के बीच जी रहे है।
वैसे तो हम 21वी में रह रहे हैं परन्तु कई मायनों में हम आज भी 16वी शताब्दी में जी रहे है। तमाम राजनैतिक दल ऐसी बातों पर हमें विभाजित करने का काम करते है। कोई भी दल भाईचारा बढ़ने एवं शांति से रहने का सन्देश नहीं देता। सब अपना चुनावी उल्लू सीधा करने के मकसद से जातिगत एवं धर्म की राजनीति कर मतों का धुरवीकरण करते हैं।
हालात कुछ इस प्रकार है कि केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 -50 उम्र वर्ग कि महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। इसी से संबंधित बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि मंदिर एक सार्वजनिक संपत्ति है, यह किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं हैं इसलिए अगर इसमें पुरुषों को जाने की अनुमति है तो महिलाओं को भी यहां प्रवेश दिया जाना चाहिए।
अपने बयान में आगे उन्हों ने कहा, ‘किन आधारों पर मंदिर अथॉरिटी ने महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई हैं। यह नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ हैं एक बार अगर आप इसे खोलते हैं तो इसमें कोई भी जा सकता है’। मंदिर अथॉरिटी का कहना हैं कि रजस्वला अवस्था की वजह से इस आयु वर्ग की महिलाएं ‘शुद्धता’ बनाए नहीं रख सकती हैं, इसलिए इस उम्र की महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले साल तक केरल सरकार भी इस फैसले का समर्थन कर रही थी परन्तु मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद उसने अपना मिज़ाज बदला एवं पाबंदी हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हाँ में हाँ मिलाई। इसके परिणाम स्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को बार बार अपना रुख बदलने के लिए फटकार भी लगाई हैं।