हालिया खबरों के मुताबिक ईपीएफओ ने छूट मिलने वाली कंपनियों के कर्मचारियों को मिलने वाले पुरे वेतन पर पेंशन देने से मना कर दिया है। आपको बता दें कि ईपीएफ पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक ईपीएस के सदस्यों को पुरे वेतन पर पेंशन दिया जाए।
दरअसल अक्टूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के तहत 12 याचिकाकर्ताओं की पेंशन में संशोधन करने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) को निर्देशित किया था। ईपीएफ पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का पालन करने में ईपीएफओ को एक साल लग गया। आपको जानकारी के लिए बता दें कि ईपीएफ के तहत कुल 5 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं।
गौरतलब है कि संगठित क्षेत्र का हर कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते का 12 फीसदी ईपीएफ को जमा करता है। जिसमें करीब 8.33 फीसदी राशि नियोक्ता की ओर से ईपीएस में जमा कराई जाती है। यदि कोई व्यक्ति नौकरी छोड़ता है, इस स्थिति में केवल वह ईपीएफ में जमा राशि ही उतार सकता है। ईपीएस की राशि पेंशन के दौरान ही दी जाती है।
ईपीएस योगदान की भी एक सीमा है, यानि जिस व्यक्ति का वेतन डीए और बेसिक सहित करीब 15000 रूपए है, उसे ही नियोक्ता की ओर से 8.33 फीसदी ईपीएस में जमा कराई जाती है। उदाहरण के लिए हर माह 15000 रूपए सैलरी का 8.33 फीसदी यानि 1250 रूपए ईपीएस में जमा कराई जाती है।
आप को बता दें कि जुलाई 2001 से सितंबर 2014 के बीच, ईपीएस की वेतन सीमा प्रति माह 6,500 रुपये थी, जिसके अनुसार हर महीने 541.4 रुपए जमा किए जाते थे। वहीं 2001 से पहले ईपीएस सैलरी कैप 5000 रूपए थी जिस पर 416.5 रुपए जमा कराए जाते थे।
क्या है पुराना मामला?
दरअसल मार्च 1996 में ईपीएस अधिनियम में पेंशन को लेकर एक संशोधन किया गया था। टीओआई सहित कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार साल 2005 में कई ईपीएफ फंड ट्रस्टी और कर्मचारियों ने ईपीएफओ से संपर्क कर ईपीएस की यह बाध्यता हटाने की मांग की। इन लोगों का कहना था कि ईपीएस को भी उनके कुल वेतन में जोड़ा जाए। ऐसे में ईपीएफओ ने यह कहते हुए कर्मचारियों की मांग ठुकरा दी कि 1996 में संशोधन की यह प्रतिक्रिया 6 माह महीने के भीतर होनी चाहिए।
इस मुद्दे को लेकर विभिन्न उच्च न्यायालयों में ईपीएफओ के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे। साल 2016 में ईपीएफ़ पेंशन वृद्धि का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जिसमें कोर्ट ने दो अलग-अलग फैसलों में किसी कट-ऑफ की तारीख को लागू किए बिना पेंशन फंड में अपने योगदान को बढ़ाने के लिए कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद ईपीएफओ को अदालत के आदेश को लागू करने के लिए एक और साल लग गया।
वर्तमान स्थिति
साल 2018 के आम बजट में सरकार नें फैसला किया है कि वह अगले तीन साल तक कर्मचारियों को मिलने वाली ईपीएफ पेंशन का 12 फीसदी खुद देगी। इससे पहले साल 2017 में सर्वोच्च न्यायालय नें ईपीएफ पेंशन के तहत पेंशन बढ़ाने के लिए मना किया था।
अब हालाँकि जल्द ही ईपीएफओ साल 2017-18 के लिए पेंशन की घोषणा कर सकती है। ईपीएफओ इसके तहत 8.65 फीसदी का ब्याज घोषित कर सकता है।
इसके उलट, वित्त मंत्रालय ईपीएफओ को ब्याज दर कम करने को कह रहा है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि सेविंग, पीपीएफ आदि योजनाओं में कम कमाई हो रही है, जिसकी वजह से ब्याज दर में कटौती की जा सकती है।