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    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पश्चिम बंगाल सरकार से पेगासस जासूसी के आरोपों की अलग न्यायिक जांच के लिए इंतजार करने और आगे नहीं बढ़ने का आग्रह किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अभी इस मुद्दे की जांच कर रही है।
    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा शीर्ष अदालत के “संयम” के संदेश को व्यक्त करने का मौखिक आश्वासन दिए जाने के बाद सरकार द्वारा नियुक्त जांच आयोग के काम पर रोक लगाने का औपचारिक आदेश पारित नहीं किया। सरकार के इस जांच आयोग में उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और कलकत्ता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योतिर्मय भट्टाचार्य शामिल हैं।
    याचिकाकर्ता ‘ग्लोबल विलेज फाउंडेशन’ नामक एक एनजीओ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि जब शीर्ष अदालत इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी तो समानांतर जांच नहीं हो सकती। पीठ ने कहा कि वह अगले सप्ताह पेगासस मामलों की सुनवाई कर सकती है और साथ ही एक व्यापक आदेश भी पारित कर सकती है। इसने याचिका को उसके समक्ष लंबित पेगासस मामलों के साथ टैग किया है।
    मुख्य न्यायाधीश रमना ने अभिषेक मनु सिंघवी को संबोधित करते हुए कहा कि, “हम आपसे कुछ संयम की उम्मीद करते हैं और प्रतीक्षा करने की उम्मीद करते हैं।” वहीं न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि पेगासस मुद्दे पर किसी भी निर्णय का अखिल भारतीय प्रभाव होने की संभावना है।
    एनजीओ की याचिका में जुलाई में आयोग की नियुक्ति करने वाली सरकारी अधिसूचना को चुनौती दी गई है। इस याचिका में कहा गया है कि आयोग के पास इस तरह की जांच शुरू करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
    वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि जांच आयोग द्वारा एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया गया था और कार्यवाही दिन-प्रतिदिन के आधार पर हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त को केंद्र को एक पूर्व-प्रवेश नोटिस जारी किया जिसमें आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी कि सरकार ने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, सांसदों और मंत्रियों पर जासूसी करने के लिए इजरायली स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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