सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पिछड़े समुदायों के वर्गों को ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में पहचानने का एकमात्र आधार आर्थिक मानदंड नहीं होना चाहिए। सामाजिक उन्नति, सरकारी सेवाओं में उच्च रोजगार आदि ने यह तय करने में समान भूमिका निभाई है कि क्या कोई व्यक्ति क्रीमी लेयर से संबंधित है और उसे कोटा लाभ से वंचित किया जा सकता है।
1992 के इंद्रा साहनी फैसले का किया जिक्र
जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने 1992 के सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी के फैसले का जिक्र करते हुए कहा, “‘क्रीमी लेयर’ के बहिष्कार का आधार केवल आर्थिक नहीं हो सकता है, जिसमें ‘क्रीमी लेयर’ की घोषणा की गई थी जिसमें कहा गया था कि पिछड़े समुदाय में ‘क्रीमी लेयर’ वालों को आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए ताकि अधिक योग्य लोग आ सकें।
अदालत ने स्पष्ट किया था कि ‘क्रीमी लेयर’ में “पिछड़े वर्गों के व्यक्ति शामिल होंगे जो कि आईएएस, आईपीएस और अखिल भारतीय सेवाओं जैसी उच्च सेवाओं में इन पदों पर काबिज़ हैं और जो सामाजिक उन्नति और आर्थिक स्थिति के उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। इसलिए ऐसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं हैं और इन्हें पिछड़ा नहीं माना जा सकता है।”
हरियाणा सरकार की अधिसूचनाओं को बताया गैर-कानूनी
अदालत 17 अगस्त 2016 और 28 अगस्त 2018 को जारी दो अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हरियाणा सरकार ने क्रीमी लेयर के लिए मानदंड तय करते हुए पिछड़े वर्गों को पूरी तरह से आर्थिक आधार पर उप-वर्गीकृत किया था।
हरियाणा पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश) अधिनियम 2016 के तहत जारी अधिसूचना में कहा गया है कि पिछड़े समुदाय के सदस्य जो सालाना 6 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं, उन्हें ‘क्रीमी लेयर’ माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हरियाणा की अधिसूचनाओं ने केवल आय के आधार पर क्रीमी लेयर की पहचान करके इंद्रा साहनी के फैसले में घोषित कानून का उल्लंघन किया है।
नई गाइडलाइन्स के लिए दिए निर्देश
अदालत ने दोनों अधिसूचनाओं को रद्द करते हुए कहा कि, “2016 अधिनियम की धारा 5 (2) में सामाजिक, आर्थिक और अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान और बहिष्कार को अनिवार्य बनाने के बावजूद, हरियाणा राज्य ने ‘क्रीमी लेयर’ का निर्धारण करने के लिए केवल आर्थिक आधार चुना। पूरी तरह से आर्थिक मानदंड के आधार पर पिछड़े वर्गों का चयन गलत है और ऐसा करने में हरियाणा सरकार ने गंभीर त्रुटि की है।”
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को तीन महीने में नए सिरे से अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। हालाँकि उच्चतम न्यायलय ने दोनों अधिसूचनाओं के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और राज्य सरकार की सेवाओं में नियुक्तियों को बाधित नहीं किया।