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    सुप्रीम कोर्ट आज आर्टिकल 35ऐ को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले में सुनवाई करेगी। जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर इस मामले की सुनवाई में सम्मिलित है। जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार देने वाले संविधान के आर्टिकल 35ऐ के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में 4 याचिकाएं दायर की गई थी।

    आर्टिकल 35ऐ

    भारत के संविधान में अनुच्छेद 35ऐ, 1954 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद जोड़ा गया। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधानमंडल को कानून बनाने की कुछ विशेष शक्तियां प्रदान करता है। इसके अनुसार जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को वहां के नागरिको की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है। इससे भारत के अन्य राज्यों के लोगो को कश्मीर में ज़मीन खरीदने, सरकारी नौकरी करने और यहाँ के विधानसभा के चुनाव में वोट करने पर रोक है।

    जम्मू-कश्मीर का संविधान 1956 में बनाया गया था, इसके अनुसार यहां का स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर वह पहले के 10 वर्षो में उस राज्य में रहा हो। साथ ही उस व्यक्ति के नाम वहां की सम्पति हो।

    इस नियम के अनुसार वहां के स्थायी नागरिको के लिए यह अधिकार है परन्तु यह अधिकार लड़कियों के लिए अलग है। यहां की लड़की अगर किसी बाहर के लड़के से शादी करती है तो उसके सारे अधिकार समाप्त हो जाते है। साथ ही उसके बच्चो के भी अधिकार समाप्त हो जाते है।

    आर्टिकल 35ऐ हटाने की मांग

    इस आर्टिकल को हटाने के पीछे एक दलील यह दी जा रही है कि यह कानून भारत की संसद के द्वारा पारित नहीं किया गया था, इसे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र के आदेश द्वारा लागु किया था। एक दूसरी दलील में कहा गया है कि 1947 में जब देश का विभाजन हुआ था तो उस वक़्त पाक़िस्तान से बड़ी मात्रा में शरणार्थी भारत आये थे। इनमे लाखो की तादाद में शरणार्थी आज भी जम्मू-कश्मीर में रह रहे है।

    याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा है कि आर्टिकल 35ऐ के माध्यम से यहां की सरकार ने उन सभी नागरिको को स्थायी निवासी प्रमाणपत्र से वंचित कर दिया था। इन वंचितों में 80 प्रतिशत लोग पिछड़े और दलित हिन्दू समुदाय से आते है। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में विवाह कर बसने वाली महिलाओ और अन्य भारतीय नागरिको के साथ यहां की सरकार इस अनुच्छेद की आड़ में भेदभाव करती है।

    दिल्ली के एक एनजीओ “वी द सिटिज़न” ने इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाया था। इस एनजीओ ने कोर्ट से इस अनुच्छेद को खत्म करने की अपील की थी। उन्होंने इस याचिका में कहा था कि यह अनुच्छेद संविधान द्वारा दिए गए नागरिको के मूल अधिकारों को जम्मू-कश्मीर में छीन लेता है। एनजीओ ने आगे कहा कि राष्ट्रपति के आदेश से लागु इस धारा को केंद्र सरकार फ़ौरन रद्द करे।

    अलगाववादियों की चेतावनी

    सुप्रीम कोर्ट में होने जा रही इस मामले की सुनवाई से पहले ही राज्य का माहौल तनाव से भर गया है। राज्य के तीन अलगाववादी नेताओ ने जनांदोलन की चेतावनी दी है। अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज़ उमर फारूक और मोहम्मद यासीन मालिक ने एक संयुक्त बयान जारी किया है जिसमे उन्होंने राज्य के लोगो से अनुरोध करते हुए कहाँ है कि अगर सुप्रीम कोर्ट राज्य के लोगो के हितो और आकांशा के खिलाफ कोई फैसला सुनाता है तो एक जनांदोलन किया जायेगा।

    अलगाववादी नेताओ ने कहा कि अगर राज्य सूचि के कानून से कोई छेड़छाड़ की गई तो यहां फलस्तीन जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी। अलगाववादी नेताओ ने दावा करते हुए कहा कि यह मुस्लिम बहुल राज्य की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए एक बड़ी साजिश रची जा रही है। आगे जनांदोलन की चेतावनी देते हुए अलगाववादी नेताओ ने कहा कि अनुच्छेद 35ऐ में किसी प्रकार का संशोधन किया जाता है तो इसके खिलाफ राज्य के हर तबके के लोग सड़को पर इसके खिलाफ उतरेंगे। आगे उन्होंने कहा कि हम पुरे घटनाक्रम को देख रहे है और जल्द ही कार्यवाई की रूपरेखा और कार्यक्रम की घोषणा कर दी जायेगी।

    अलगाववादी नेताओ ने बीजेपी पर आरोप लगते हुए कहा कि बीजेपी राज्य में जनमत संग्रह की प्रक्रिया को नाकाम करने की कोशिश कर रही है। आगे पीडीपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि पीडीपी आरएसएस की सहयोगी पार्टी है।