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    देश की शीर्ष जांच एजेंसी के प्रमुख का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की आज बैठक होगी। इस बैठक में सीबीआई के अगले प्रमुख के नाम पर मुहर लग सकती है। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाशीश (सीजेआई) और विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी शामिल हैं। इस पद के लिए कई अधिकारियों के नाम दौड़ में हैं। गत फरवरी से सीबीआई प्रमुख का पद रिक्त है।

    सीबीआई प्रमुख के नाम पर मुहर लगाने के लिए होने वाली बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाशीश (सीजेआई) एनवी रमना और विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी शामिल होंगे। सीबीआई प्रमुख का चयन करने के लिए होने जा रही इस बैठक में उन नामों पर चर्चा होगी, जो इस पद के लिए रेस में हैं।

    दौड़ में कई अधिकारियों के नाम

    सूत्रों का कहना है कि इस पद के लिए 1984, 1985 और 1986 बैच के अधिकारियों के नाम पर विचार होगा। हालांकि जिन अधिकारियों के नाम पर ज्यादा चर्चा है उनमें राकेश अस्थाना, वाईसी मोदी और सुबोध जायसवाल शामिल हैं। अभी फिलहाल 1988 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी प्रवीण सिन्हा सीबीआई के कार्यवाहक प्रमुख का कार्यभार संभाल रहे हैं। सीबीआई के डिप्टी चीफ राकेश अस्थाना के साथ हुए विवाद के बाद सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटा दिया गया था। इसके बाद ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का निदेशक बनाया गया था।

    यूपी के डीजी का नाम भी चर्चा में

    1985 बैच के अधिकारी सुबोध जायसवाल इस समय सीआईएसफ के डीजी हैं जबकि 1984 बैच के अधिकारी राकेश अस्थाना डीजी बीएसएफ के रूप में तैनात हैं। वहीं, 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी वाईसी मोदी एनआईए के चीफ हैं। सीबीआई के अगले प्रमुख पद के लिए उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक एचसी अवस्थी का नाम भी चर्चा में है।

    अभी फिलहाल 1988 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी प्रवीण सिन्हा सीबीआई के कार्यवाहक प्रमुख का कार्यभार संभाल रहे हैं। सीबीआई के डिप्टी चीफ राकेश अस्थाना के साथ हुए विवाद के बाद सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटा दिया गया था। इसके बाद ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का निदेशक बनाया गया था।

    सीबीआई निदेशक की चयन प्रक्रिया

    बता दें कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया, जो आज है, वह पहले नहीं थी। अगर नब्बे की दशक की बात करें तो उस वक्त सीबीआई निदेशक को नियुक्त करने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास था। दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिसमेंट एक्ट के तहत सरकार जब चाहे निदेशक को हटा सकती थी। विपक्षी दलों ने इसी वजह से सीबीआई की कार्यप्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप लगाया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने विनीत नारायण मामले में सीबीआई निदेशक को थोड़ी मजबूती देने का काम किया। इस फैसले के बाद निदेशक का कार्यकाल न्यूनतम दो साल कर दिया गया। इसके बाद यह उम्मीद की गई कि अब जांच एजेंसी का निदेशक केंद्र सरकार के दबाव में आकर काम नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए एक चयन समिति का गठन हो सका।

    इसका फायदा यह हुआ कि निदेशक को मनमर्जी से हटाना या उसका तबादला करना बंद हो गया। ये दोनों काम सेलेक्शन पैनल की मर्जी के बिना नहीं हो सकते थे। इस प्रक्रिया में सेलेक्शन कमेटी, सीवीसी के अलावा गृह सचिव और डीओपीटी के सचिव की सहमति जरुरी थी। नए निदेशक का चयन करने के लिए भी यही कमेटी सूची तैयार कर उसे प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजती थी।

    2013 में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम 1946 की धारा 4ए में लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम के अंतर्गत संशोधन कर दिया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता सर्च कमेटी द्वारा भेजे गए नामों में से निदेशक का चयन करते हैं।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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