सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा, जिन्हें केंद्र द्वारा छुट्टी पर भेजा गया है, ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें दो साल के नियत कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था और उन्हें स्थानांतरित नहीं किया जा सकता था। आलोक वर्मा ने निर्धारित दिशानिर्देशों के खिलाफ केंद्र के आदेश पर रोक रोक लगवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
सुनवाई के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि यहाँ आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाया जा रहा। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘हम कानूनी दायरे में रहकर इस मामले का परीक्षण कर रहे हैं।’
सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए वर्मा की वकील फली एस नरीमन ने कहा कि ‘सीबीआई निदेशक को 1 फरवरी, 2017 को नियुक्त किया गया था और नियमो के हिसाब से ये दो साल का एक निश्चित कार्यकाल होता है इसलिए इस दौरान मेरे मुवक्किल का ट्रांसफर भी नहीं किया जा सकता।’
जस्टिस एस के कौल और के एम जोसेफ समेत बेंच के समक्ष अपना जवाब दाखिल करते हुए वर्मा के वकील नरीमन ने कहा कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के पास वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने का सुझाव देने का कोई अधिकार नहीं है।
नरीमन ने कहा ‘विनीत नारायण के फैसले की व्याख्या होनी चाहिए। यह स्थानांतरण नहीं है बल्कि मेरे मुवक्किल वर्मा को उनकी शक्ति और कर्तव्यों से वंचित कर दिया गया है। अगर ऐसा होगा तो फिर नारायण के क़ानून आयर फैसलों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।’
गौरतलब है कि 1997 में विनीत नारायण केस में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए का निर्णय भारत में उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से संबंधित है। 1997 से पहले, सीबीआई निदेशकों का कार्यकाल तय नहीं किया गया था और उन्हें सरकार द्वारा किसी भी वक़्त हटाया जा सकता था। लेकिन विनीत नारायण के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई निदेशक के लिए अधिकारी को आजादी के साथ काम करने की अनुमति देने के लिए कम से कम दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया।
कोर्ट ने सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है।