विशेषज्ञों ने चीन–पाकिस्तान की 6200 करोड़ डॉलर की महत्वकांक्षी सीपीईसी परियोजना की सुरक्षा के ऊपर नए सवाल उठाये हैं।
प्राकृतिक आपदा
उनके अनुसार ग्वादर स्थित बंदरगाह में एक बड़ी प्रकृतिक आपदा इस परियोजना को खतरे में डाल सकती है। ग्वादर मकराना की खाई के करीब स्थित है जहाँ आख़िरी बार 1941 में 8.1 तीव्रता के भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी, जिसकी वजह से उत्पन्न हुई सुनामी से ओमान, भारत और पाकिस्तान में करीब 4000 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी।
ऐसी किसी भी विपदा से निपटने के पाकिस्तान और चीन की 40 सदसीय रिसर्चरों की टीम ने पिछले महीने इस खेत्र का एक्सपेरिमेंटल 3 नामक जहाज़ से जियोलाजिकल सर्वे किया है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय ओशनोग्रफिक संसथान के महानिदेशक आसिफ इनाम का कहना है कि इस अभियान को बड़े तौर से चीन की आर्थिक मदद से किया जा रहा है और इससे से तटीय डेवेलपर और योजनाकारों को काफ़ी सहायता पहुँचेगी।
अमरीका स्थित विल्सन सेंटर के माइकल कुगेल्मैन के अनुसार पाकिस्तान में संसाधनों की कमी के चलते एक बड़ा भूकंप ग्वादर परियोजना को खतरे में डाल सकता है पर साथ ही यह ज़्यादा बड़े पैमाने पर नहीं होगा क्योंकि बंदरगाह का वास्तविक संचालन अभी शुरू नहीं हुआ है।
भारत की चिंता
भारत शुरू से ही इस इकनोमिक कॉरिडोर का विरोध करता रहा है जिसका कारण इसका पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रना है। रिपोर्ट्स के अनुसार चीन ने अपने दूसरे नौसेना बेस के लिए प्रस्ताव दाखिल किया है। कुगेल्मैन के मुताबिक ग्वादर में नौसेना बेस का निर्माण भारत के लिए और बड़े सर दर्द का कारण होगा।
आतंकी हमले का डर
पाकिस्तान की न्यूज़ एजेंसी डौन के अनुसार वहां के गृह मंत्रालय ने पिछले हफ्ते गिलगित बल्तिस्तान सरकार को चिट्ठी लिखकर आर्थिक गलियारे की सुरक्षा मज़बूत करने के निर्देश दिए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने चिट्ठी में भारत पर आरोप लगाया है कि उसने 400 मुस्लिम नौजवानों को अफ़ग़ानिस्तान ट्रेनिंग के लिए भेजा है। जिसके बाद उनका उपयोग सीपीईसी के प्रतिष्ठानों पर हमले के लिए होगा।
इस घटनाक्रम के बाद पूरे गलियारे की सुरक्षा बढ़ा दी गई है और इस परिस्थिति पर गिलगित-बल्तिस्तान सरकार में उच्च पदस्थ अधिकारी अपनी नज़र बनाये हुए हैं। गलियारे में स्थित अनेक पुलों को भी संवेदनशील घोषित कर दिया गया है।