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    भारत पाकिस्तान

    जब वन बेल्ट वन रोड चीन के महत्त्वकांक्षी प्रकल्प की घोषणा की गयी, उस समय कई देशों ने चीन द्वारा उठाये गए इस कदम की प्रशंसा की। इस प्रकल्प का हेतु एशिया और यूरोपी देशों को सडक मार्ग से जोड़ना और आर्थिक सहयोग को बढ़ाना था।

    चीन के इस महत्त्वकांक्षी प्रकल्प में भारत ने हिस्सा लेने से इन्कार किया था, जिसे चीन एक चुनौती के रूप में देखता हैं, ऐसा कई विशेषज्ञ मानते हैं। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी चीन के वन बेल्ट वन रोड का एक हिस्सा हैं, पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर को चीन से जोड़ने वाला यह गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता हैं। इसी कारणवश भारत के ओर से चीन के इस प्रकल्प का बहिष्कार कर दिया गया था।

    अप्रैल के अंत में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई अनौपचारिक वार्ता में भी इस विषय में भारत का रुख़ साफ़ रहा। पिछले साल मई में चीनी सरकार में वन बेल्ट वन रोड की उच्चस्तरीय बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारत को आमंत्रण भेजा था, लेकिन भारतीय सरकार ने इस ठुकरा दिया था।

    भारतीय विदेश मंत्रालय ने वन बेल्ट वन रोड के बारमें भारतीय रुख़ को स्पष्ट करते हुए कहा, “ओबीओआर के विषय में भारतीय नीति में कोई बदलाव नहीं हैं। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर जाता हैं, पाक व्याप्त कश्मीर भारत का अटूट अंग हैं और सीपीइसी का इससे होकर जाना भारत की संप्रभुता और अखंडता का उल्लंघन हैं। विश्व का कोई देश उसके संप्रभुता के लिए घातक प्रकल्पों में हिस्सा नहीं लेगा।”

    सीपीईसी का भारत पाकिस्तान पर प्रभाव

    चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर भारतीय नीति का भारत चीन संबंधो पर सीधा असर पड़ता हैं। पाक व्याप्त कश्मीर भारत के लिए उसका एक अटूट हिस्सा हैं, और कई भारतीय इसे भावनात्मक विषय भी मानते हैं। इसके चलते भारत इस गलियारे को अपने पाक व्याप्त कश्मीर के दावे की अवहेलना मानता हैं।

    भारत-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में अगर चीन निवेश करता है तो इससे भारत पाकिस्तान के रिश्ते अधिक ख़राब होंगे। सीपीईसी अगर पूरी तरह से कार्यान्वित होता हैं, तो चीन को पाकिस्तान के बंदरगाहों का उपयोग करने के आजादी मिल जाएगी। सीपीईसी के कार्यान्वित होने से भारत के इस क्षेत्र में प्रभाव पर परिणाम होगा। दुर्भाग्यवश अगर भारत पाकिस्तान के बीच भविष्य में युद्ध की परिस्थितियां उत्पन्न होती है, तो चीन अपने हितों रक्षा करने के लिए युद्ध में पाकिस्तान की ओर से हिस्सा ले सकता हैं।

    चीन का अरब सागर में सीपीईसी के कार्यान्वित होने से प्रभाव बढ़ जाएगा, इससे क्षेत्रीय असंतुलन पैदा होने की आशंका जताई जा रही हैं। सीपीईसी से पाकिस्तान में आधुनिकीकरण किया जाएगा और इससे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति मजबूत होने की आशंका हैं।

    भारत का ओबीओआर में शामिल होने को पाक अधिकृत कश्मीर पर भारतीय दावे को पीछे लेना समझा जाएगा। और विश्व का कोई भी देश, किसी भी परिस्थितियों में अपनी संप्रभुता और अखंडता से समझौता नहीं करेगा। भारत अगर सीपीइसी विरोध नहीं करेगा तो इस भारत की कमजोरी समझी जाएगी और इससे भारत की उभरती महशक्ति वाली छवि को बाधा पहुंचेगी, इसमें कोई शंका नहीं हैं।

    भारत को सीपीईसी और ओबीओआर के विषय में एक सक्त नीति तयार करनी पड़ेगी और पाक अशिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा होने की बात विश्व के सभी देशों को स्पष्ट करनी पड़ेगी। भारत की की गयी निंदा से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    चीन पाकिस्तान आर्थिक गयियारे के पूरी तरह से कार्यान्वयित होने से पहले भारत ने सक्त कदम उठाना जरुरी हैं।

    By प्रशांत पंद्री

    प्रशांत, पुणे विश्वविद्यालय में बीबीए(कंप्यूटर एप्लीकेशन्स) के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीती, रक्षा और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज में रूचि रखते हैं।

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