पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह व्यावसायिक क्षेत्र और सीपीईसी योजना की दृष्टि से पाक के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। पाकिस्तान की अधिकतर व्यापारिक प्रक्रिया इसी पोर्ट से होती है। चीन सीपीईसी के जरिए ग्वादर बंदरगाह मे निवेश कर रहा है। चीन अच्छी तरह से जानता है कि ग्वादर बंदरगाह पर निवेश करके वो पाकिस्तान को कर्ज में डूबा देगा और इसके संचालन पर अपना अधिकार कर लेगा।
चीन व पाकिस्तान के बीच में सीपीईसी के जरिए ग्वादर बंदरगाह मे हो रहे निवेश को लेकर सौदा भी हुआ। इन सौदों से ऐसा लगता है कि चीन को लाभ हो रहा है और पाकिस्तान को नुकसान।
चीन की ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग कंपनी व पाकिस्तानी अधिकारियों के बीच में हुए समझौतों के मुताबिक चीन ग्वादर बंदरगाह के कुल राजस्व में 91% हिस्सेदारी रखेगा। साथ ही इसके आस-पास के फ्री जोन में 85% हिस्सेदारी रखेगा। इससे साबित होता है कि आने वाले समय में चीन का इस बंदरगाह पर पूर्ण अधिकार होगा।
हाल ही में पाकिस्तानी सीनेट में पाकिस्तान के बंदरगाह और नौवहन मंत्री मीर हसील बिज़ेन्जो ने इस बारे मे बताया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि ग्वादर बंदरगाह, मुक्त व्यापार क्षेत्र और सभी संचार ढांचे के विकास के लिए चीन के बैंकों से प्राप्त 16 अरब डॉलर का ऋण को 13 प्रतिशत दी दर से (7% बीमा शुल्क ) पाकिस्तान को वापस करना होगा।
गौरतलब है कि ये प्रोजेक्ट 56 अरब डॉलर का चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का हिस्सा है। व्यावसायिक आंकड़ों की माने तो चीन द्वारा इसमें किया गया निवेश वो चार वर्षों मे ही प्राप्त कर लेगा। पाकिस्तानी मंत्री ने सीनेट में बताया कि चीनी कंपनी अगले 40 सालों तक बीओटी (बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर) व्यवस्था के माध्यम से ग्वादर बंदरगाह का संचालन करेगा।
सीपीईसी पर पाक नेताओं ने उठाए सवाल
इसके बाद की जिम्मेदारी पाकिस्तान निभाएगा। पाकिस्तान सरकार से चीन के साथ किए सीपीईसी सौदे को लेकर जानकारी देने की मांग लंबे समय से की जा रही थी।
लेकिन पाक सरकार इन सौदों के लिए कोई जानकारी नहीं दे रही थी। पाकिस्तान के अधिकतर सीनेटरों का मानना है कि ये सौदा चीन के प्रति अधिक झुकाव रखता है।
साथ ही पाकिस्तान के राष्ट्रीय हितों के विपरीत है। कई सीनेटरों का कहना है कि इस तरह के सौदों को निजी क्षेत्र से इनपुट की जरूरत है और सरकार को राष्ट्रीय महत्व के सौदे पर हस्ताक्षर करने से पहले व्यापार संगठनों को शामिल करना चाहिए था।
ज्यादातर नेताओं का कहना है कि 40 सालों के लिए किया गया सौदा व्यावहारिक नहीं लगता है। चीन इसके जरिए पाकिस्तान को उच्च ब्याज दरों पर ऋण दे रहा है।