त्रिपुरा की विभिन्न आदिवासी पार्टियों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। इन पार्टियों का कहना है कि नया कानून पूर्वोत्तर के लोगों के हित में नहीं है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के फ्रंटल संगठन और राज्य की सबसे पुरानी आदिवासी पार्टी त्रिपुरा राज्य उपजाति गणमुक्ति परिषद (टीआरयूजीपी) और अखिल भारतीय चकमा सोशल फोरम (एआईसीएसएफ) ने सोमवार को विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) 2019 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की घोषणा की।
त्रिपुरा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन ने सोमवार को आईएएनएस को बताया कि वह पहले ही सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर कर चुके हैं।
देब बर्मन ने कहा, “अनुभवी वकील कपिल सिब्बल या अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में मेरी याचिका की पैरवी कर सकते हैं।”
बर्मन ने 12 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात कर उनसे त्रिपुरा को सीएए के दायरे से बाहर रखने का अनुरोध किया था।
नई दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले, टीआरयूजीपी अध्यक्ष और त्रिपुरा के पूर्व आदिम जाति कल्याण मंत्री जितेंद्र चौधरी ने कहा कि सीएए पूरी तरह से संविधान और राष्ट्र के वैचारिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि देश के अंदर ही नहीं, कई अन्य देशों ने आधिकारिक या गैर आधिकारिक रूप से सीएए के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त किया है।
चौधरी ने आईएएनएस से कहा, “बांग्लादेशी हिंदुओं, बौद्धों, ईसाइयों आदि ने सीएए के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है और कहा है कि इस अधिनियम के कारण संबंधित देश में उनके जीवन व सुरक्षा को अधिक खतरा पैदा हो जाएगा। मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा बांग्लादेश में 1.75 लाख अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ जाएगा।”
चौधरी ने कहा कि सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा सीएए को एक उपकरण के रूप में उपयोग कर रही है।
वहीं दूसरी ओर अखिल भारतीय चकमा सोशल फोरम ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि चकमा सीएए 2019 की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।