केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शुक्रवार को कहा कि ‘झूठ के झाड़’ से ‘सच के पहाड़’ को नहीं छुपाया जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि सीएए और एनआरसी को लेकर झूठी कहानियां गढ़ी जा रही हैं। नकवी ने यहां आयोजित मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन एवं केंद्रीय वक्फ कौंसिल की संयुक्त बैठक में कहा, “नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर बेबुनियाद और झूठी कहानियां गढ़ी जा रहीं हैं, अफवाह से अमन को अगवा करने की कोशिश हो रही है।”
नकवी ने कहा, “मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, केंद्रीय वक्फ कौंसिल के सदस्य देश भर में शैक्षिक संस्थानों, धार्मिक प्रतिनिधियों, गैर-सरकारी संगठनों, आम लोगों से संपर्क-संवाद कर समाज के बड़े वर्ग में पैदा की जा रही ‘सियासी साजिश’ से भरपूर गलतफहमी को दूर कर सच्चाई की ताकत से झूठ और दुष्प्रचार को बेनकाब करने का अभियान शुरू करेंगे।”
नकवी ने आगाह किया, “हमें पूरी तरह से होशियार रहना चाहिए ऐसी साजिशों से, जो समाज के सौहार्द्र के ताने-बाने को अपने सियासी फायदे के लिए तार-तार करने पर उतारू हैं। एनआरसी के नाम पर अनार्की इसी का जीता-जागता प्रमाण है।”
नकवी ने याद दिलाया कि “1951 से असम में चल रही एनआरसी प्रक्रिया सिर्फ असम तक सीमित है, देश के किसी भी हिस्से में यह लागू नहीं है। एनआरसी को मुसलमानों की नागरिकता से जोड़ना सफेद झूठ ही नहीं, भ्रम एवं भय का भूत खड़ा करने की कोशिश है।”
नकवी ने कहा कि “मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, केंद्रीय वक्फ कौंसिल के सदस्य आम लोगों के बीच जाएंगे और नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर कुछ लोगों द्वारा जो दुष्प्रचार, फेक फैब्रिकेटेड फसाना चलाया जा रहा है उसे बेनकाब करेंगे। लोगों को यह समझाएंगे कि नागरिकता कानून से किसी भी भारतीय की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है, हर भारतीय नागरिक की नागरिकता सुरक्षित है।”
उन्होंने कहा कि झूठ के पैर नहीं होते, वह औंधे मुंह गिरता है, जो लोग ‘सत्यमेव जयते’ की जगह ‘झूठमेव जयते’ के सिद्धांत के साथ अमन को अफवाह से अगवा करने की कोशिश कर रहे हैं वे नाकाम होंगे और ‘सत्यमेव जयते’ ही ‘झूठमेव जयते’ की साजिशी सियासत को पटखनी देगा।
नकवी ने कहा, “हमें दुष्प्रचार के दानवों से होशियार रहना चाहिए। सिटीजनशिप एक्ट, नागरिकता देने के लिए है, छीनने के लिए नहीं। हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक तरक्की के बराबर के हिस्सेदार-भागीदार हैं। एनआरसी और नागरिकता बिल को जोड़ कर देश को गुमराह करने की साजिश को परास्त करना है। 1951 में असम में शुरू एनआरसी प्रक्रिया मात्र असम तक सीमित है, जो अभी खत्म नहीं हुई है। लिस्ट में जिनका नाम नहीं आया है, वे ट्रिब्यूनल और उसके बाद अदालतों में अपील कर सकते हैं। सरकार भी उनकी मदद कर रही है।”