महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 में हुए विस्फोट के मामले में मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के टिकट से भोपाल संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतर चुकी हैं। संभवत: यह पहला ऐसा मामला है, जब किसी राष्ट्रीय पार्टी ने आतंक के आरोपों का सामना कर चुकी किसी आरोपी को अपना उम्मीदवार बनाया है। मालेगांव विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
हालांकि उनके ऊपर लगाया गया महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) हटा लिया गया था। वह एक आतंक रोधी कानून, अनधिकृत गतिविधि निवारक अधिनियम(यूएपीए) की कड़ी धाराओं के तहत मुकदमे का सामना कर रही हैं। इस कानून को टाडा और पोटा के बाद का कानून माना जाता है।
ठाकुर मौजूदा समय में 2017 में मुंबई की एक अदालत द्वारा दी गई जमानत पर बाहर हैं।
भारतीय कानून के अनुसार, 25 वर्ष के ऊपर का कोई भी नागरिक चुनाव लड़ने के योग्य है, जबतक उसके ऊपर कोई अपराध सिद्ध नहीं हो जाता या फिर इसके लिए दो या इससे ज्यादा समय के लिए सजा नहीं काट लेता।
ठाकुर को किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है।
यूएपीए के तहत, आज के समय में दो विभिन्न तरह के आपराधिक कार्य आते हैं- ‘गैरकानूनी गतिविधि’ और ‘आतंकवादी कृत्य’। आतंकवाद के आरोपियों को प्राय: यूएपीए के तहत आरोपी बनाया जाता है। अगर प्रज्ञा ठाकुर यूएपीए के तहत दोषी ठहरा दी जाएंगी, तो उन्हें अधिकतम सात साल कारावास की सजा काटनी पड़ सकती है और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के वकील कुमार मिहिर ने कहा, “जन प्रतिनिधित्व अधिनियम किसी भी उस व्यक्ति को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है, जिसके खिलाफ मुकदमा चल रहा है या वह जमानत पर बाहर है, लेकिन ऐसे व्यक्ति को अपने शपथपत्र और नामांकन में उसके खिलाफ सभी मामलों का खुलासा करना जरूरी है।”
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली ‘बेगुनाही के अनुमान’ पर आधारित है और जबतक वह व्यक्ति वास्तव में दोषी साबित नहीं हो जाता, उसे निर्दोष माना जाता है।
मिहिर ने कहा, “भारत में चुनाव लड़ने का वैधानिक अधिकार सभी को दिया गया है और कोई भी व्यक्ति जिसपर मुकदमा चल रहा है और दोषी नहीं ठहराया गया है, उसे निर्दोष माना जाता है। उसे चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता।”
मालेगांव मामला-
29 सितंबर, 2008 : महाराष्ट्र के मालेगांव में शक्ति गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने एक एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल में रखा गया विस्फोटक फट गया। घटना में छह लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हो गए थे।
महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे ने मामला अपने हाथ में लिया। एटीएस ने पाया कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाईकिल ठाकुर के नाम से पंजीकृत है, जो कि एबीवीपी की पूर्व सदस्य रह चुकी थीं। एटीएस ने पाया कि घटना में हिंदुत्व संगठन अभिनव भारत और स्वंयभू बाबा सुधाकर द्विवेदी ऊर्फ दयानंद पांडे इसमें शामिल है।
ठाकुर की संलिप्तता-
ठाकुर को मामले में 24 अक्टूबर, 2008 को गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी से जांचकर्ताओं को हिंदुत्व कट्टरवाद के कथित गतिविधि के बारे में जानकारी मिली। उनके खिलाफ मालेगांव मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया, जहां उनकी मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया था।
एटीएस के आरोपपत्र में बताया गया था कि ठाकुर 2006 से उन बैठकों में शामिल हो रहीं थीं, जिसमें मालेगांव विस्फोट की साजिश रची जा रही थी। 11 अप्रैल, 2006 को भोपाल में प्रज्ञा ने कथित तौर पर हमला कराने के लिए लोगों को तलाशने का काम अपने जिम्मे लिया। ये लोग सुनिल जोशी, रामचंद्र कलसंगरा और संदीप डांगे थे।
समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट के संबंध में एक अन्य आरोपपत्र में, एनआईए ने आरोप लगाया कि वह आरोपी असीमानंद को 2003 से जानती हैं। लेकिन एजेंसी विस्फोट में दोनों की मिलीभगत को साबित करने में विफल रही।
ठाकुर का नाम अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में भी आया, लेकिन उनपर कभी आरोपपत्र तैयार नहीं किया जा सका।
अप्रैल 2017 : एनआईए ने राजस्थान की विशेष अदालत में ठाकुर, आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार के खिलाफ समापन रपट दाखिल किया, हालांकि राजस्थान एटीएस ने कहा कि ठाकुर और इंद्रेश ने अन्य के साथ 31 अक्टूबर, 2005 को बैठक में भाग लिया था।