कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने जिन 224,000 से अधिक फर्मों का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था, जांच के बाद पता चला कि इनमें से करीब 130,000 से अधिक कंपनियों के पास स्थायी खाता संख्या (पैन) ही नहीं है। आप को जानकारी के लिए बता दें कि इन कंपनियों ने बिना पैन के ही करोड़ों रुपए का लेनदेन किया है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज को केवल 93,000 कंपनियों के पास पैन होने की जानकारी है। आप को बता दें कि 50,000 रुपए से अधिक के साधारण लेनदेन पर पैन को अनिवार्य किया गया है। जो निष्कर्ष सामने आया है, उसके अनुसार बिना पैन वाली इन सभी कंपनियों ने टैक्स का भगुतान भी नहीं किया है।
सूत्रों के अनुसार बिना पैन वाली इन कंपनियों के ट्रांजेक्शन मामलों की जांच करने में आयकर अधिकारियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रिटर्न फाइलिंग ना करने के कारण कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर दिया गया। मीडिया खबरों के अनुसार कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा अब यह भी जांच की जाएगी कि क्या सभी सक्रिय कंपनियों के पास भी पैन है अथवा नहीं।
रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज यानि आरओसी की ओर से कई कंपनियों का पंजीकरण रद्द किए जाने के बावजूद देश में सक्रिय कंपनियों की संख्या करीब 1.13 मिलियन है। पैन का यह मुद्दा बैंकों तथा मंत्रालयों के बीच चिंता का विषय बना हुआ है। क्योंकि हाल में ही बैंक उन कंपनियों का ट्रांजेक्शन विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहे जिन कंपनियों का पंजीकरण पैन के आभाव में रद्द कर दिया गया है।
सूत्रों के अनुसार स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) संबंधित मंत्रालय को इन कंपनियों के ट्रांजेक्शन की सटीक जानकारी देने में विफल रहा। सरकार की ओर से शेल कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई में 224,000 कंपनियों के पंजीकरण रद्द करने के साथ ही उनके डायरेक्टर्स यानि निदेशकों को भी अयोग्य घोषित कर दिया है।
एमसीए 809 ऐसी कंपनियों की जांच में जुटी हुई है, जिनके बारे में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) के पास कोई जानकारी नहीं है। जिन 300,000 शेल कंपनियों को बंद कर दिया गया है, उनके डायक्टरों को पहले ही अयोग्य घोषित किया जा चुका है। ऐसे अयोग्य घोषित किए जा चुके निदेशकों की संख्या 450,000 से अधिक हो सकती है।
अयोग्य घोषित किए निदेशकों में से करीब 100 डायरेक्टर्स ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में अपील भी की है। इसके अतिरिक्त करीब 70 ऐसी कंपनियां भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना पंजीकरण रद्द करने के खिलाफ अपील कर रखी है।
आपको बता दें कि विमुद्रीकरण के बाद देश में पैन आवेदकों की संख्या में 300 फीसदी का इजाफा देखा गया।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (सीबीडीटी) के अध्यक्ष सुशील चंद्र ने अपने बयान में कहा था कि जहां प्रति माह लगभग 250,000 पैन के लिए आवेदन किए जाते थे, वहीं पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद नवंबर के अंत तक पैन आवेदकों की संख्या बढ़कर 750,000 के आस पास हो गई थी।
कई बैंकों की ओर से जारी किए गए आंकड़ों में मंत्रालय को भारी अंतर देखने को मिले। 13 बैंकों ने जो विवरण भेजें हैं, उनके विश्लेषण से पता चलता है कि नोटबंदी के बाद करीब 4500 करोड़ रुपये जमा कराए गए तथा इतने ही रूपए निकाले भी गए।
वास्तव में ऐसी कई कंपनियां हैं जिनके पास 100 से अधिक खाते हैं, इनमें से एक कंपनी ऐसी भी है जिसके पास अकेले 2,134 खाते हैं।
गौरतलब है कि ऐसी कई कंपनियां थी जिनके खाते में 8 नवंबर, 2016 को जीरो रूपए थे लेकिन नोटबंदी के घोषणा के बाद इन कंपनियों के खाते में करोड़ों रूपए धनराशि जमा कराई गई।