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    भारतमाला [सड़क निर्माण] परियोजना

    ‘द नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स’ ने ‘नेशनल हाइवेज अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया’ के अंतर्गत जिस 5.35 लाख करोड़ के “भारतमाला परियोजना” को हरी झंडी दिखाई थी, उसे इस वक़्त पैसो की कमी के चक्कर में देरी की मार खानी पड़ रही है। केंद्र सरकार की तरफ से पेश की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कार्यक्रम में देरी के मुख्य कारण- भूमि अधिग्रहण, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की तयारी, बोली लगाने की प्रक्रिया, कंसेसियनार की नियुक्ति और इसका शारीरिक निर्माण हैं।

    एनएचएआई‘ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस परियोजना को बनाने में बहुत सी स्टेजेस हैं जिनके चक्कर में देरी हो रही है।

    2017 में लांच हुआ, इसे इंडिया का सबसे बड़ा हाईवे डेवलपमेंट प्लान बताया जाता है। मगर इसके 1368 किलोमीटर अभी ही भी बाकी रह गए हैं। “भारतमाला परियोजना” फेज 1 ने 24,800 किलोमीटर की सड़क बनाने का लक्ष्य रखा है। साथ में, ‘नेशनल हाइवेज डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के अंदर बाकी बचे 10,000 किलोमीटर का काम भी इसमें शामिल है।

    ‘कैबिनेट कमिटी ऑन इकनोमिक अफेयर्स’ के फाइनल किये प्लान के मुताबिक पहले फेज का खर्चा है 5.35 लाख करोड़।

    ये परियोजना आर्थिक गलियारों, अन्तर गलियारों, फीडर रूट, बॉर्डर और इंटरनेशनल कनेक्टिविटी रोड्स, कॉस्टल और पोर्ट कनेक्टिविटी रोड्स और ग्रीनफ़ील्ड एक्सप्रेसवेज की जरुरत के बनाई गयी है।

    एक रिपोर्ट के अनुसार, “परियोजना के बड़े स्तर को देखते हुए, ये बेहद जरूरी है कि परियोजना को लागू करने के लिए और उसके शारीरिक और वित्य उन्नति को ‘प्रोग्राम मैनेजमेंट ऑफिस'(पीएमओ) द्वारा मॉनिटर किया जाये। ‘एटी किअरनि’ और ‘क्रिसिल’ को फेज 1 को सपोर्ट करने के लिए ‘प्रोग्राम मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स’ के तौर पे नियुक्त किया गया था।”

    ये नोटिस भी किया गया कि ‘सीसीईए’ ने जितना बजट बताया था, पूरी पूंजी लागत उसके 50% ज्यादा की आई। “भारतमाला” के अंदर चल रही 6,361 किलोमीटर की परियोजनाओं का पूरी पूंजी लागत 1.475 लाख करोड़ आई।

    परियोजना को नए सिरे से शुरू करने पर एक रिपोर्ट के मुताबिक, “शुरू की परियोजनाओं की पूंजी लागत 23.1 करोड़ प्रति किलोमीटर के हिसाब से है। और ‘सीसीईए’ के मंजूर करी लागत से पूरी लागत करीबन 15.5 कोर प्रति किलोमीटर है।”

    8,134 किलोमीटर लम्बी “भारतमाला परियोजना” को ‘एनएचएआई’ की तरफ से वर्तमान वित्तय साल में टारगेट किया गया था जिसमे से 268 किलोमीटर को सितम्बर 2018 तक टारगेट किया जा चूका था।

    एक रिपोर्ट ने बताया-” पहले क्वार्टर में टारगेट किये हुए 321 किलोमीटर में से, 118 किलोमीटर को भी इसी पीरियड में टारगेट किया गया था। दूसरे क्वार्टर में टारगेट किये 2,707 किलोमीटर में से, 150 किलोमीटर की केवल तीन परोयोजनाओ को सितम्बर 2018 तक टारगेट किया गया था।”

    इस रिपोर्ट में, भूमि अधिग्रहण, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की तयारी और बोली लगाने की प्रक्रिया के कारण हुई देरी के बारे में विस्तार से कहा गया है।

    रिपोर्ट के अंत में लिखा है कि, “जनवरी 2018 तक टारगेट किये 5,944 किलोमीटर की 122 परोयोजनाओ की, 3,209 किलोमीटर की 58 परियोजनाओं की अभी तक बोली दस्तावेज भी जमा नहीं कराये गए हैं।”

    आगे परियोजनाओं के शारीरिक निर्माण में हुई देरी को मुख्य आक्रषण के तौर पे पेश गया है।

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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